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________________ अध्यात्म प्रवचन : एक संदर्शन - भारतीय धर्म, दर्शन के गंभीर चिन्तक सत्य के स्पष्ट विवेचक एवं निर्भीक उद्घोषक, प्रज्ञा महर्षि राष्ट्रसन्त उपाध्याय श्री अमर मुनि का नाम, आज समस्त अध्यात्म जगत में एक जागृत प्रज्ञाशीलता का पर्याय है। प्रत्येक दिशा में उन्मुक्त एवं स्वतन्त्र, तटस्थ तथा संतुलित विचार चिन्तन, जिसमें मुखरित होता है; भारतीय मनीषा का मूल स्वर, दर्शन का आलोक और धर्म का अमृतचिन्तन। गुरुदेव श्री अमर मुनि, एक स्थानकवासी जैन श्रमण के परिवेश में समग्र जैनत्व के प्रतीक हैं। सम्प्रदाय और रूढ़िवाद की संकीर्णता से सर्वथा मुक्त; महावीर के अनन्त सत्य का समग्रता के साथ दर्शन, प्रवचन और प्रस्थापना करने में सक्षम, वाग् देवता के वरदपुत्र, महावीर के अध्यात्मिक उत्तराधिकारी महान् मनीषी हैं। आपश्री के अध्यात्म विषयक प्रवचनों का एक विराट संस्करण "अध्यात्म प्रवचन" भाग 1, लगभग 25 वर्ष पूर्व प्रकाशित हो चुका है। उसमें मुख्यतः दर्शन का स्पर्श करने वाले गूढ़ अध्यात्म विषयों पर बहुत ही सुन्दर, सन्तुलित और हृदय स्पर्शी प्रवचन है। अब प्रस्तुत अध्यात्म प्रवचन (द्वितीय भाग) में ज्ञान एवं आचार के गहन तथ्यों को उद्घाटित करने वाले, तत्व चिन्तन प्रधान जीवन स्पर्शी तत्वों का विशद विवेचन प्रस्तुत है। प्रस्तुत भाग में ज्ञान-मीमांसा के अन्तर्गत प्रमाण, नय, आदि का सारपूर्ण सर्वांग विवेचन हुआ है। तथा आचार-मीमांसा में श्रावक की आचार मर्यादा, आदर्श जीवन शैली पर नई दृष्टि से चिन्तन किया गया है। इस प्रवचन संग्रह का सम्पादन किया है आपके ही विद्वान शिष्य श्री विजय मुनि जी शास्त्री ने। श्री विजय मुनि जी एक बहुश्रुत चिन्तक तो है ही, प्रवचन एवं लेखन कला के क्षेत्र में स्वतः प्रतिष्ठापन्न हैं। अब तक 50 से अधिक पुस्तकों का सम्पादन/लेखन कर चुके हैं। पाठक उनकी प्रवाहपूर्ण लेखनी का आनन्द अनुभव करेंगे.....। प्राप्ति स्थान * सन्मति ज्ञान पीठ, जैन भवन, लोहामंडी, आगरा-282002 * वीरायतन, राजगिर, 403116 जिला नालन्दा (बिहार) Jain Education-inema For Private Persohal Use Only wwwamary.org
SR No.001338
Book TitleAdhyatma Pravachana Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1991
Total Pages170
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Spiritual
File Size10 MB
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