SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 160
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जीवन का नियामक शास्त्र : आचार १५९ मार्ग। विनय उसी का ही विस्तार है । विनयपिटक के जितने भी शिक्षापद हैं, वे सब अष्टांग मार्ग की देन हैं। अतः मूल में यही बौद्ध परम्परा का विनय एवं आचार है। वैदिक आचार आर्यों की सभ्यता, संस्कृति और धर्म की रूप-रेखा जानने का एवं समझने का एक मात्र साधन वेद ग्रन्थ ही हैं। परम्परा से श्रुत (सुना हुआ) होने के कारण वेद को श्रुति कहा गया है । मनु ने अपनी स्मृति में कहा है “ श्रुतिस्तु वेदो विज्ञेयो धर्म-शास्त्रं तु वै स्मृतिः ।" वैदिक साहित्य को दो भागों में विभक्त किया गया है - ज्ञानकाण्ड और कर्म - काण्ड | प्रथम में संहिता एवं उपनिषदों का समावेश होता है तथा द्वितीय में ब्राह्मण ग्रन्थ एवं कल्पसूत्र ग्रन्थों का। यज्ञ-यागादि का पूर्ण परिचय कल्पसूत्रों से होता है। कल्पसूत्रों के दो विभाग हैं - श्रौत सूत्र, स्मार्त सूत्र । श्रौतसूत्र श्रुति से प्रसूत हैं इसलिए श्रौत सूत्र कहे जाते हैं। आर्यों के मूल आचार अथवा याग पद्धति का परिबोध श्रौत सूत्रों से ही होता है। स्मार्तसूत्रों की संरचना स्मृति के आधार पर हुई है। स्मार्तसूत्रों के भी दो विभाग हैं - गृह्यसूत्र और धर्मसूत्र । गृह्यसूत्रों में गृहस्थ के आचार, अनुष्ठान और यज्ञ करने की विधि का विस्तार से वर्णन किया गया है। इनमें मनुष्य के जन्म से लेकर मृत्युपर्यन्त होने वाले षोडश संस्कारों का भी वर्णन किया गया है। जो आर्यों का विशेष आचार है । धर्मसूत्रों में धार्मिक नियम, राजा और प्रजा के अधिकार तथा कर्तव्यों का विधान किया गया है। वर्ण-व्यवस्था एवं आश्रम व्यवस्था का पूर्ण परिज्ञान कराया गया है। धर्मसूत्रों के आधार पर स्मृतियों की रचना हुई है। स्मृतियों की संख्या अनियमित है । परन्तु दो स्मृतियाँ अत्यन्त प्रसिद्ध हैंमनु-स्मृति और याज्ञवल्क्यस्मृति । महाकवि कालीदास ने रघुवंश महाकाव्य के आरम्भ में ही स्मृति को वेदानुगामिनी कहा है। वेद के अर्थ का ही स्मृति ग्रन्थ अनुचिन्तन करते हैं। लोक-मंगल की भावना से जनकल्याण के लिए वेद विहित व्यवस्था देते हैं। इसी आधार पर स्मृतियों को धर्मशास्त्र की संज्ञा प्राप्त होती है। वे लोकाचार का प्रतिपादन करते हैं। मनु ने आचार को परम धर्म कहा है। सदाचार का विस्तार से वर्णन मनु ने किया है । ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्रों के कर्तव्यों का वर्णन किया है। अतः स्मृति ग्रन्थ आचार - शास्त्र हैं। स्मृति प्रतिपादित आचार वैदिक परम्परा में गौतमधर्मसूत्र सर्वाधिक प्राचीन है। धर्मसूत्रों को आधार मानकर विभिन्न स्मृतियों का संगुम्फन किया गया है। स्मृतियों में सबसे प्राचीन है - मनुस्मृति । जिसमें वैदिक आचार का सर्वांगीण विकास हुआ है । प्रायः सभी स्मृतियों का एक ही विषय है- देश एवं काल के अनुसार आचार की मीमांसा करना तथा प्रसुप्त जन चेतना को प्रबुद्ध करके धर्म की ओर उन्मुख करना । जो जन-जीवन, राजधर्म और अर्थशास्त्र अधीन होकर चल रहा था उसे मनु ने अपनी स्मृति में धर्म के अधीन लाकर धर्मशास्त्र Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001338
Book TitleAdhyatma Pravachana Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1991
Total Pages170
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Spiritual
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy