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________________ जीवन का नियामक शास्त्र : आचार १५७ के धार्मिक नियमों पर चल सकता है। पर दोनों शास्त्रों का सम्बन्ध घनिष्ठ है। एक का प्रभाव दूसरे पर बहुत अधिक है। वास्तव में जो नैतिक दृष्टि से अच्छा है वह धार्मिक भी है, और जो धार्मिक दृष्टि से अच्छा है, वह नैतिक भी है। आचारनियम धार्मिक विचारों की पुष्टि करते हैं। इस दृष्टि से धर्मशास्त्र और आचारशास्त्र एक-दूसरे से सम्बन्धित हैं। आचारशास्त्र और दर्शनशास्त्र (Ethics and Philosophy) संसार तथा उसके तत्त्व-सम्बन्धी प्रश्नों की विवेचना दर्शनशास्त्र में की जाती है। संसार क्या है, मनुष्य का उसमें क्या स्थान है ? आत्मा तथा परमात्मा क्या है ? उसकी प्रकृति क्या है ? इत्यादि प्रश्न इस शास्त्र के हैं। दर्शन का सम्बन्ध पदार्थों की वास्तविकता से है। आचारशास्त्र दर्शन से सम्बन्धित है। उसकी समस्याओं का समाधान दर्शन की विवेचनाओं पर अधिकतर निर्भर है। जिस प्रकार के दार्शनिक विचार होते हैं, हमारे नैतिक विचार भी वैसे ही होते हैं। जड़वाद (Materialism) पर ही सुखवाद (Hedonism)आधारित है। यदि जड़ जगत ही वास्तविक है, तो मनुष्य का ध्येय अधिक से अधिक सुख प्राप्त करना ही होना चाहिए। इस तरह सुखवाद की प्रवृत्ति होती है। वैसे ही चेतनवाद (Spiritualism) पर पूर्णतावाद (Perfectionism) की नींव है। बिना किसी दार्शनिक आधार के आचारशास्त्र एक कल्पना है। ___ इच्छाशक्ति की स्वतन्त्रता, मनुष्य की नैतिक प्रकृति इत्यादि प्रश्नों की विवेचना दर्शनशास्त्र में होती है। आचारशास्त्र उन्हीं पर अवलम्बित है। आचारशास्त्र को आचार-दर्शन भी कहा गया है। इसलिए दर्शन आचारशास्त्र का आधार है। पर दोनों में अन्तर भी है। दर्शन का क्षेत्र आचारशास्त्र के क्षेत्र से विस्तृत है। आचार सम्बन्धी समस्याएँ दर्शन का एक अंग हैं। दर्शनशास्त्र में अन्य समस्याओं पर भी विचार किया जाता है। दर्शनशास्त्र सैद्धान्तिक है। उसमें किसी भी विषय का चिन्तन ज्ञान की दृष्टि से किया जाता है। आचारशास्त्र व्यावहारिक तथा आदर्श-निर्देशक है। इसका सम्बन्ध मनुष्य के दैनिक जीवन और व्यवहार से है। . भारतीय आचार-परम्परा भारत के तीनों प्राचीन धर्मों-वैदिक, जैन और बौद्ध-ने अपनी परम्परा और पद्धति के अनुरूप आचारों की प्ररूपणा की है। भारत की प्रजा में प्राचीन काल से ही आचार अत्यन्त लोकप्रिय रहा है। भारतीय जन-जीवन का वह अभिन्न अंग रहा है। लोक-जीवन की प्राणशक्ति ही आचार है। भारतीय संस्कृति तथा सभ्यता का मूल आधार आचार रहा है। आचारहीन जीवन को भारत की प्रजा कभी सहन नहीं कर सकती। आचारसम्पन्न व्यक्ति यदि अनक्षर भी हो तो उसका सत्कार होगा। विद्वान यदि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001338
Book TitleAdhyatma Pravachana Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1991
Total Pages170
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Spiritual
File Size10 MB
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