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श्रावक की दिनचर्या १३१ (अ) वह दिन धन्य होगा, जब मैं महारम्भ और महापरिग्रह का त्याग करके लघुभूत बनूँगा।
(ब) वह दिन धन्य होगा, जब मैं अगार धर्म से अनगार धर्म में प्रवेश करूँगा। संसार के कर्म प्रपञ्च का त्याग करके शान्त जीवन व्यतीत करूँगा।
(स) वह दिन धन्य होगा, जब मैं जीवन के अन्तिम क्षणों में संथारा ग्रहण करूँगा। शान्त, प्रशान्त एवं उपशान्त होकर, समाधि प्राप्त करूँगा।
५.फिर श्रावक नगर में स्थित श्रमण एवं श्रमणी के दर्शन करे। धर्मस्थान में,मन्दिर तथा स्थानक में जाकर, धर्म प्रवचन सुने। त्याग करे। मध्य काल में क्या करें?
१.मध्य काल में घर आकर, भोजन करे। भोजन से पूर्व पाँच या सात बार नमस्कार मन्त्र पढ़े। साधु-साध्वी को आता देखकर प्रसन्न हो जाए। सात-आठ कदम आगे जाकर भक्त-पान की प्रार्थना करे। अतिथि संविभाग व्रत को सफल करे।
२.साधर्मिक उपस्थित हो, तो उसको भी भोजन कराए। उसको सहयोग प्रदान करे।
३. द्वार पर याचक एवं भिखारी उपस्थित हो, तो उसको भी करुणा वृत्ति से दान करे।
४.नित्य प्रति दान करना श्रावक का परम कर्तव्य है। दान करने से त्याग का अभ्यास बढ़ता है। अपनी शक्ति के अनुसार दान करे।
५. फिर थोड़ा विश्राम करके कुछ समय स्वाध्याय करे। जिन-वाणी का अध्ययन करे। अध्यात्म ग्रन्थों का वाचन करे। चिन्तन-मनन करे। मध्य काल की सामायिक करे। ध्यान करे। सायं काल में क्या करें?
१. सायं काल में भोजन करना हो, तो दिवा भोजन करे, रात्रि में भोजन न करे। सम्भव हो, तो रात्रि में चतुर्विध आहार का त्याग करे, अन्यथा तो त्रिविध आहार का प्रत्याख्यान करे।छना पानी ग्रहण करे, कदापि अनछना पानी ग्रहण न करे।
२.फिर सूर्यास्त से पूर्व ही धर्म स्थान मन्दिर, स्थानक एवं उपाश्रय तथा पोषध-शाला में पहुँच कर, षड् आवश्यक करे। स्तोत्र पाठ करे। आगमों का स्वाध्याय करे। अध्यात्म चर्चा करे। धार्मिक प्रश्नोत्तर करे। श्री संघ के प्रेम और गौरव की बात-चीत करे। किसी की निन्दा आलोचना न करे।
३. फिर अपने घर लौटकर अपने वृद्ध माता-पिता की सेवा करे। रुग्ण व्यक्ति की सेवा करे। घर में सब की सुख-साता पूछे।
४. फिर तीन प्रकार की जागरिका का विचार करे। तीन जागरण इस प्रकार हैं
(अ) धर्म जागरण-धर्म ही कल्याणकर है। धर्म का पूरा परिपालन करे। वीतराग धर्म ही सच्चा धर्म है। धर्म ही मेरा मित्र है।
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