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________________ आचार मीमांसा १०७ जाता है। श्रावक को इनका भी परिमाण करना चाहिए। आज के नूतन वाहन, जैसे कि जल-यान एवं वायु-यान तथा लोह-पथ-गामिनी गन्त्री का भी परिमाण करना चाहिए। श्रमण-जीवन में तो सचित्त तथा अचित्त समस्त वाहनों का सर्वथा परित्याग होता है। इच्छा परिमाण व्रत के पञ्च अतिचारः (क) क्षेत्र वास्तु-परिमाण अतिक्रमण (ख) हिरण्य-सुवर्ण-परिमाण अतिक्रमण (ग) धन-धान्य-परिमाण अतिक्रमण (घ) द्विपद-चतुष्पद-परिमाण अतिक्रमण (ङ) कुप्य-परिमाण अतिक्रमण इन पञ्च अतिचारों का सम्बन्ध नव प्रकार के पदार्थों से है। श्रावक को इन अतिचारों का सेवन नहीं करना चाहिए, अन्यथा स्वीकृत व्रत भंग हो जाता है। श्रावक, श्रमण के समान परिग्रह का सर्वथा त्याग नहीं कर पाता। अंश रूप में ही वह परिग्रह का परित्याग करता है। यह त्याग उसके इच्छा परिमाण अर्थात् परिग्रह परिमाण व्रत से फलित होता है। अतः इसको स्थूल परिग्रह विरमण भी कहा गया है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001338
Book TitleAdhyatma Pravachana Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1991
Total Pages170
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Spiritual
File Size10 MB
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