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________________ साध्य और साधन साध्य को सिद्धि के लिए साधन को आवश्यकता रहती है। साधन के अभाव में साधक शक्तिशाली होकर भी अपने साध्य की उपलब्धि नहीं कर सकता । साध्य का परिज्ञान हो जाने पर एवं लक्ष्य का निश्चय हो जाने पर ही साधक के समक्ष साधन का विचार प्रस्तुत होता है । किस साध्य का क्या साधन हो? इसका विवेचन करना साध्य की सिद्धि के लिए आवश्यक हो जाता है ? साध्य जितना ऊंचा होता है और जितना गम्भीर होता है, साधन भी उतना ही ऊँचा एवं गम्भीर होना चाहिए । साध्य-सिद्धि की ओर लक्ष्य देना आवश्यक अवश्य है, किन्तु साधन की ओर लक्ष्य देना भी कम महत्वपूर्ण नहीं है। साध्य, साधक का ध्येय होता है, किन्तु उस ध्येय पर पहुँचने के लिए शक्ति और भक्ति की आवश्यकता रहती है । शक्ति का अर्थ हैप्रयत्न, और भक्ति का अर्थ है - एकनिष्ठता। ध्याता, ध्यान द्वारा अपने ध्येय की उपलब्धि करता है। योगी योग के द्वारा अपने परम मंगल को प्राप्त करता है । ज्ञाता ज्ञान के द्वारा ज्ञेय को जान सकता है । साधक साधन के द्वारा साध्य की उपलब्धि करता है। साधक साधना के द्वारा जिस सिद्धि को प्राप्त करना चाहता है, उस सिद्धि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001337
Book TitleAdhyatma Pravachana Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1991
Total Pages380
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Spiritual
File Size17 MB
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