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साथ ही कलकत्ता के उत्साही युवक श्री ऋषीश्वर नारायणसिंह बी० ए०, एल-एल० बी० का सहयोग भी पुस्तक के साथ चिरस्मरणीय रहेगा, जिन्होंने प्रवचनों का संकलन (लिपि-लेखन) बड़े ही उत्साह के साथ किया है।
पुस्तक के प्रूफ संशोधन आदि आवश्यक कार्यों में श्री श्रीचन्द जी सुराना 'सरस' ने जो सेवा एवं सहयोग किया है उसके लिए भी हम उन्हें धन्यवाद देते हैं।
कलकत्ता चातुर्मास के प्रवचन इस पुस्तक में सब नहीं आ गए हैं, लगभग आधे से भी कम ! बाकी के प्रवचन भी यथा समय हम विज्ञ पाठकों के समक्ष पहुँचाने का प्रयत्न कर रहे हैं।
हम आशा करते हैं कि प्रस्तुत पुस्तक, पाठकों को और खासकर अध्यात्म-रसिक सज्जनों को रुचिकर लगेगी, वे इसे अधिकाधिक मात्रा में अपनाकर साहित्य-सेवा के साथ-साथ अध्यात्म-प्रेम का भी परिचय देंगे।
विनीत मंत्री, सन्मति ज्ञानपीठ
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