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________________ प्रकाशकीय श्रद्धेय उपाध्याय श्री जी का गम्भीर चिन्तन धर्म, दर्शन, अध्यात्म तथा समाज, संस्कृति की गहराई को जिस सूक्ष्मता के साथ पकड़ता है, वह अद्भुत है। उनका चिन्तन मौलिक तो होता ही है, मधुर एवं सरस भी होता है। तर्क-प्रधान एवं सारग्राही होता है । प्रस्तुत पुस्तक 'अध्यात्म-प्रवचन' में पाठक उनके आध्यात्मिक चिन्तन की अतल गहराइयों में पैठकर नई स्फूर्ति और नया विचार- मौक्तिक पाकर प्रसन्नता से झूम उठेंगे । 'अध्यात्म-प्रवचन' कलकत्ता के ऐतिहासिक चातुर्मास में उपाध्याय श्री जी द्वारा दिए गए अध्यात्म-रस से ओत-प्रोत गंभीर विश्लेषण एवं चिन्तन प्रधान प्रवचनों का संकलन है । प्रवचनों का संपादन हमारे जाने माने तरुण - साहित्यकार श्री विजयमुनि शास्त्री ने किया है । कहने की आवश्यकता नहीं कि वे संपादन में उपाध्याय श्री जी के विचारों की मूल आत्मा को सुरक्षित एवं व्यवस्थित रखने में कहाँ तक सफल हुए हैं ? यह सब तो पाठक स्वयं पढ़कर ही साक्षात् अनुभूति से प्रमाणित कर सकते हैं । उपाध्याय श्री जी के ऊर्ध्वगामी चिन्तन का प्रतिबिम्ब ही तो श्रीविजय मुनि में उतरा है । वे सिर्फ उपाध्याय श्री जी के अन्तेवासी शिष्य ही नहीं, बल्कि ज्ञान -पुत्र भी हैं । उपाध्याय श्री जी के भावों को सुरक्षित रखने में एवं यथा प्रसंग स्पष्टीकरण करने में उनसे अधिक प्रामाणिक और कौन हो सकता है ? श्री विजय मुनि जी की सरस, धाराप्रवाह एवं विवेचन- प्रधान लेखनी से हमारा पाठक वर्ग चिर परिचत है ही, हमें उनसे बहुत आशाएँ हैं । प्रवचनों का संकलन करवाने में कलकत्ता श्री संघ के उत्साही कर्मठ कार्यकर्त्ताओं ने जो सहयोग एवं सद्भाव दिखाया है, उसके लिए वे सन्मति ज्ञानपीठ की ओर से ही नहीं, उपाध्याय श्री जी के प्रवचनों के समस्त पाठक वर्ग की ओर से भी शतशः धन्यवाद के पात्र हैं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001337
Book TitleAdhyatma Pravachana Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1991
Total Pages380
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Spiritual
File Size17 MB
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