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________________ ३६८ | अध्यात्म प्रवचन एक बार की बात है, एक सेठ अकेला ही विदेश के लिए चल पड़ा । उसने अपने साथ से किसी को नहीं लिया । मार्ग लम्बा और विकट था, फिर भी उसके मन में इसकी चिन्ता न थी । उसे अपने आप पर विश्वास था । उसे अपनी बुद्धि और अपने विवेक पर विश्वास था । वह हमेशा अपनी स्वयं की बुद्धि और विवेक पर चलता था । मार्ग में जब वह चला जा रहा था, तब उसे एक व्यक्ति मिला । दोनों परस्पर साथी बन गए । सेठ ने भी सोचा, चलो एक से दो भले । दूसरा साथी वस्तुतः सच्चा साथी नहीं था, वह तो एक ठग था । लोगों को ठगना ही उसका काम था। पहले वह दूसरों का साथी बनता और फिर विश्वास साध कर धीरे-धीरे उसे ठगता । उसने कुछ दूर चलने पर सेठ पर भी अपना हाथ साफ करने का विचार किया । चलते-चलते सन्ध्या हो जाने पर एक गाँव के बाहर रात्रि निवास के लिए वे ठहरे । रात्रि को सोने से पहले उस ठग ने सेठ से कहा - "यह गाँव ठीक नहीं है, अपनी सम्पत्ति को संभाल कर ठीक से रखना ।" सेठ ने अपना बटुआ दिखाकर उस ठग साथी से कहा – “यदि यह मेरा है, तो कहीं जा नहीं सकता और यदि यह मेरा नहीं है, तो फिर इसकी हिफाजत किसी तरह की नहीं जा सकती ।" उस ठग ने समझ लिया, कि यह सेठ पूरा बुद्ध है । इस पर हाथ साफ करना कठिन नहीं, आसान है । रात्रि में सेठ सो गया । वह ठग भी सोया तो नहीं, किन्तु सोने का नाटक करने लगा। जब उसने देखा कि सेठ को गहरी नींद आगई है, तब वह उठा और सेठ के वस्त्रों की तलाशी करने लगा । बहुत देर तक तलाश करने पर भी उसके हाथ वह बटुआ नहीं लगा । आखिर थक कर और परेशान होकर वह ठग भी सो गया । प्रातःकाल जब दोनों उठे, तब उस ठग साथी ने सेठ से कहा, कि "अपनी पूँजी को सँभाल लो, वह सुरक्षित है या नहीं !" सेठ ने सहज भाव से कहा, "क्या सँभाल लें, सब ठीक है । देखो यह बटुआ मेरे पास ही है ।" वह ठग सारी रात जिस बटुए की तलाश करता रहा, प्रातःकाल उसे सेठ के पास देखकर बड़ा आश्चर्य हुआ। दूसरे दिन और तीसरे दिन भी इसी प्रकार घटना घटी। वह ठग सोचने लगा- आखिर, यह बात क्या है ? इसके पास ऐसा कौनसा जादू है, जिससे वह रात में इस बटुए को गायब कर देता है । आखिर उसने सेठ से पूछा"सेठ ! मैं तुम्हारे साथ धनापहरण के लिए रहा, परन्तु उसमें में Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001337
Book TitleAdhyatma Pravachana Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1991
Total Pages380
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Spiritual
File Size17 MB
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