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२६६ | अध्यात्म-प्रवचन
सकते हैं, किन्तु इसके बाद कैसे रह सकते हैं ? इनके लिए 'जावजीवाए' का ही पाठ आता है न ? अतः प्रस्तुत जीवन के बाद मोक्ष में ये कैसे रह सकते हैं ? अब रही भाव चारित्र की बात, वह तो आत्मा का निज धर्म है । भाव चारित्र का अर्थ है - स्वरूप रमणता, स्वरूपलीनता । स्वरूप रमण मोक्ष में अवश्य रहता ही है । जहाँ आत्मा है, वहाँ उसका स्वरूप भी अवश्य रहेगा और उस स्वरूप में तन्मयता एवं तल्लीनता रूप भाव चारित्र मोक्ष में अवश्य ही रहता है । सिद्धों में व्रत रूप चारित्र नहीं रहता, परन्तु स्वरूपरमणता रूप चारित्र तो रहता ही है । यदि सिद्धों में स्वरूपरमणतारूप चारित्र भी न माना जाए, तब वहाँ कौन-सा चारित्र रहेगा ? द्रव्य चारित्र तो वहां रह नहीं सकता । और चारित्र सर्वथा न रहे, यह भी ठीक नहीं है, क्योंकि चारित्र जब आत्मा का निज गुण है, तब जहाँ गुणी है, वहाँ उसका गुण अवश्य रहेगा ही । इस दृष्टि से मैं आपसे यह कह रहा था, कि मोक्ष की स्थिति में भी चारित्र रहता है । जैसे वहाँ क्षायिक सम्यक् दर्शन और क्षायिक सम्यक् ज्ञान रहता है, वैसे ही क्षायिक सम्यक् चारित्र भी वहाँ अवश्य रहता है । जब चारित्र मोह का सर्वथा क्षय होने पर क्षायिक सम्यक् दर्शन और क्षायिक ज्ञान के समान क्षायिक चारित्र हो गया तो वह मोक्ष में कहाँ चला जाएगा ? यदि क्षायिक चारित्र नष्ट हो सकता है तो फिर क्षायिक सम्यक्दर्शन और क्षायिक ज्ञान भी नष्ट क्यों नहीं हो सकते हैं ?
यह ठीक है कि आगमों में मोक्ष दशा में चारित्र नहीं माना है । परन्तु यह तो तर्क से विचार करना ही पड़ेगा कि वह कौन सा चारित्र है, जो मोक्ष में नहीं माना जाता । व्यवहार चारित्र सिद्धों में नहीं है, यह तो ठीक है । परन्तु निश्चय चारित्र तो वहाँ तर्क सिद्ध है । क्षायिक भाव वही होता है, जो सादि अनन्त हो । इस तर्क से क्षायिक चारित्र मुक्तदशा में पूर्णरूपेण तर्क सिद्ध है । यदि कोई कहे कि तर्क अप्रमाण है, हम तर्क को नहीं मानते, तो उनका यह कहना अयुक्त है । सिद्धान्त के निर्णय के लिए तर्क करना अच्छा है, बुरा नहीं है । बुद्धि के द्वार को बन्द करना मैं कभी पसन्द नहीं करता । आखिर किसी भी सिद्धांत के तथ्य को परखने की कसौटी बुद्धि और तर्क ही तो है । मैं उन आचार्यों का हजार बार अभिनन्दन करता हूँ, जिन्होंने तर्क और बुद्धि को महत्व दिया है । आँख मूँद कर किसी बात को स्वीकार करने की अपेक्षा, मैं यह अधिक उचित समझता है, कि तर्क और बुद्धि से विचार
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