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________________ अमृत की साधना : सम्यक् दर्शन | २६७ मिथ्या ज्ञान विष है और सम्यक् ज्ञान अमृत है, किन्तु दोनों का मूल केन्द्र एक ही है, आत्मा का निज गुण ज्ञान । इसी प्रकार चारित्र के सम्बन्ध में भी यही कहा जाता है, कि चारित्र आत्मा का निज गुण है और उसकी दो पर्याय हैं - सम्यक् चारित्र और मिथ्या चारित्र । सम्यक् चारित्र चारित्र को विशुद्ध पर्याय है और मिथ्या चारित्र चारित्र की अशुद्ध पर्याय है, किन्तु दोनों का मूल गुण एक ही हैंचारित्र गुण | चारित्र क्या है ? आत्मा का अपना पुरुषार्थं, आत्मा का अपना पराक्रम और आत्मा की अपनी वीर्य शक्ति । आत्मा की जो अपनी क्रिया शक्ति है, वस्तुतः वही स्वरमणरूप भाव चारित्र है । भाव चारित्र का अर्थ है - स्वभाव में रमण करना, स्वभाव में लीन रहना और जीवन के विशुद्ध स्वरूप सागर में गहरी डुबकी लगाना । आत्मा की किया - शक्ति जब स्वरूप रमण की ओर होती है, तब वह सम्यक् चारित्र होती है, पर जब वही आत्मा के मूल केन्द्र को छोड़कर संसार की तथा संसार की वासनाओं की ओर दौड़ने लगती है, जब आत्मभाव के बदले वह अनात्मभाव में लीन होती है, और जब वह आत्मा में रमण न करके संसार के बाह्य पदार्थों में रमती है, तब उसे मिथ्या चारित्र कहा जाता है । रमण की मूल क्रिया एक ही है, परन्तु उसका स्व स्वरूप में रमण होना सम्यक् चारित्र है, तथा उसका परस्वरूप में राग द्वेष रूप से रमण करने लगना मिथ्या चारित्र है । सम्यक् चारित्र अमृत है और मिथ्या चारित्र विष है । मैं आपसे कह रहा था, कि यदि आप भारत के अध्यात्मवादी दर्शन का गम्भीरता के साथ चिन्तन एवं मनन करेंगे, तो आप भली भाँति जान सकेंगे, कि जीवन मूल में विष नहीं है, अमृत है । एक विचार और है । सम्भवतः आपके मन में यह प्रश्न उठता होगा, कि यह जीवन क्या वस्तु है ? मेरे विचार में जीवन और आत्मा अलगअलग नहीं हैं । जो आत्मा है, वही जीवन है और जो जीवन है, वही आत्मा है । दोनों एक ही तत्व हैं। आत्मा के अभाव में जीवन की सत्ता नहीं रह सकती और जीवन के अभाव में आत्मा की सत्ता नहीं रहती । अध्यात्मवादी दर्शन आत्मा को एक विशुद्ध तत्व मानता है और वह यह भी कहता है, कि यह आत्मा ही परमात्मा है और यह जीव ही परब्रह्म है । भारत का अध्यात्मवादी दर्शन एक ही सन्देश देता है, कि राम, कृष्ण, महावीर और बुद्ध सब तुम्हारे अन्दर में ही हैं। भारत का दर्शन दीर्घ काल तक परमतत्व की खोज करता रहा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001337
Book TitleAdhyatma Pravachana Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1991
Total Pages380
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Spiritual
File Size17 MB
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