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________________ पंथवादी सम्यक् दर्शन | २५६ मात्र यही है, कि जीवन की अधोवाही धारा को ऊर्ववाही धारा बनाया जाय । इसका मूल आधार सम्यक् दर्शन ही है । सम्यक् दर्शन के बिना अध्यात्म-साधना ऊर्ध्वमुखी नहीं होती। और ज्ञान भी मोक्षाभिमुखी नहीं होता। ___ यात्रा और भटकने में बड़ा अन्तर है । यात्रा में एक लक्ष्य स्थिर होता है, एक उद्देश्य निर्धारित होता है, किन्तु भटकने में न कोई लक्ष्य होता है और न कोई उद्देश्य ही । निरन्तर अपने लक्ष्य के पथ पर ही कदम बढ़ाते जाना तो यात्रा है, और कभी इधर चले गये और कभी उधर चले गए, और कभो फिर पथ पर आ गए और फिर इधर-उधर चले गए, और वापस लौट गए, तो इसे यात्रा नहीं, भटकना ही कहा जाता है । कल्पना कीजिए, आपका एक लड़का है किसी निर्धारित कार्य के लिए वह घर से बाहर जाता है। दिन भर कार्य-निष्पत्ति के लिए इधर-उधर घूमता फिरता रहता है और सांयकाल को फिर बाहर से घर आ जाता है, उस स्थिति में आप उसका आदर करते हैं। परन्तु यदि वही लड़का बिना किसी निश्चित लक्ष्य और कार्य के यों ही दिन भर इधर-उधर भटक भटका कर घर आता है, तब उसे आप क्या कहेंगे ? भटकने वाला आवारा अथवा कार्य करने वाला सहयोगी ? एक व्यक्ति किसी प्रयोजनवश घर से बाहर बहुत दूर चला जाता है और दीर्घकाल तक घर से बाहर रहता है और फिर घर लौट आता है। इसी प्रकार कालान्तर में फिर वह प्रयोजनवश घर से बाहर चला जाता है और फिर घर आ जाता है । दूसरा व्यक्ति बिना किसी लक्ष्य के यों ही बहुत दूर दूर घूमता है घर लौट आता है और ऐसा बार-बार करता है। आप इन दोनों को क्या कहेंगे? यात्रा करने वाले यात्रो अथवा भटकने वाले आवारा ? यह दो चित्र आपके समक्ष हैं, गमन दोनों में होता है और आगमन भी दोनों में होता है । किन्तु एक के न जाने में कोई उद्देश्य है और न आने में ही कोई उद्देश्य है जबकि दूसरे का गमन भी सोद्देश्य है और आगमन भी सोद्देश्य है। आवारा व्यक्ति घर में रहकर भी घर को अपना नहीं समझता, जबकि कार्यशील व्यक्ति घर से दूर रहकर भी घर को अपना समझता है। भागने, भटकने और आने जाने में बड़ा अन्तर होता है। जिसका कोई लक्ष्य न हो और जिसका कोई उद्देश्य न हो, उसका जाना और आना भी भट Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001337
Book TitleAdhyatma Pravachana Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1991
Total Pages380
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Spiritual
File Size17 MB
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