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________________ १६४ | अध्यात्म-प्रवचन मैं आपसे धर्म के विषय में कुछ कह रहा था। धर्म क्या है ? अहिंसा, संयम और तप यही तो धर्म है । मुख्य प्रश्न यहाँ पर यह है, कि धर्म का आधार क्या है ? जैन-दर्शन के अनुसार धर्म का आधार सम्यक दर्शन है । सम्यक् दर्शन है, तभी अहिंसा का पालन किया जा सकता है । सम्यक् दर्शन है, तभी संयम का पालन किया जा सकता है । सम्यक दर्शन है, तभी तप किया जा सकता है। सम्यक दर्शन के अभाव में अहिंसा, संयम और तप धर्म नहीं रह सकते । मेरे कहने का अभिप्राय यही है, कि धर्म का आधार सम्यक् दर्शन है। जितनी भी साधना है, उस सबके मूल में यदि सम्यक् दर्शन नहीं है, तो वह साधमा मोक्ष की साधना नहीं हो सकती। मोक्ष की साधना के लिए अन्य किसी सद्गुण की उतनी आवश्यकता नहीं है, जितनी सम्यक दर्शन की । सम्यक् दर्शन को धर्म का मूल कहा गया है। ____ कल्पना कीजिए, एक वृक्ष है । वह हरा-भरा है, फूल और फलों से लदा है, देखने में बड़ा सुन्दर लगता है । क्या कभी आपने यह विचार किया, कि यह वृक्ष इतना समृद्ध क्यों है ? वृक्ष की समृद्धि का मूल कारण उसका ऊपरी भाग नहीं है, उसकी समृद्धि का मूल कारण है उसकी जड़ें, जो पृथ्वी के अन्दर गहरी समायी हुई हैं । जिस वृक्ष की जड़ें जितनी गहरी होंगी, वह उतना ही अधिक पल्लवित, पुष्पित और फलित होता है । जिस वृक्ष की जड़ें नीचे भूगर्भ तक पहुंच चुकी हैं, उस वृक्ष पर आँधी और तूफान का भी कुछ असर नहीं होता । जिस वृक्ष की जड़ें जितनी गहरी रहती हैं, उसका विकास और उसमें फल एवं फूलों की उत्पत्ति भी उतनी ही अधिक होती है। दुर्भाग्य से जिस वृक्ष की जड़ें जमीन में गहरी नहीं उतरी हैं, वह आँधी और तूफान के झटके सहन नहीं कर सकता। यह मैं मानता हैं कि वृक्ष का अस्तित्व केवल उसके जड़ भाग में नहीं है, उसका ऊपरी भाग भी महत्वपूर्ण है, परन्तु यह तभी, जब कि उसकी जड़ शक्ति-सम्पन्न रहती है और उसमें पृथ्वी से अपना पोषण तत्त्व प्राप्त करने की शक्ति रहती है। पतझड़ आता है और हरे-भरे वृक्ष को ढूंठ बनाकर चला जाता है, परन्तु वसन्त आने पर वह वृक्ष फिर हरा-भरा हो जाता है, उसमें नई-नई कोंपलें फूट आती हैं ? नये पुष्प और नये फलों से वह फिर भर जाता है । यह इसलिए होता है कि उसकी जड़ों में अभी पृथ्वी से अपना पोषण-तत्त्व ग्रहण करने की शक्ति है। इसके विपरीत जिस Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001337
Book TitleAdhyatma Pravachana Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1991
Total Pages380
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Spiritual
File Size17 MB
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