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________________ २२ | अध्यात्म-प्रवचन का प्रयत्न नहीं किया । किन्तु सद्गुरु केशीकुमार श्रमण की संगति से एवं उनके सानिध्य से उसी क्रूर प्रदेशी में इतना बड़ा परिवर्तन आया, कि जिसे सुनकर हम सबको आश्चर्य होता है । क्रूरता एवं निर्दयता की चरम सीमा पर पहुँच कर राजा प्रदेशी, दया और करुणा के रस से इतना आप्लावित हो गया था, कि स्वयं उसकी अपनी रानी सूर्यकान्ता ने भोजन में विष दे दिया और राजा को उसके षडयन्त्र का पता भी चल गया, फिर भी वह शान्त एवं प्रसन्न रहा । उसने अपने मन में विषमता नहीं आने दी । क्रोध और द्वेष की एक सूक्ष्म रेखा भी उसके समत्व पूर्ण मन पर अंकित नहीं हो सकी । मैं पूछता हूँ आपसे कि राजा प्रदेशी में इतना महान अन्तर कैसे आ गया और कहाँ से आ गया ? निश्चय ही यह परिवर्तन कहीं बाहर से नहीं, उसके अन्दर से ही आया था । उसकी मोह-मुग्ध आत्मा जो अभी तक प्रसुप्त थी, जागत होकर अपने शुद्ध स्वरूप में स्थित हो गई । क्रूरता का भाव निर्मल प्रेम और सद्भाव में परिणत हो गया । एक प्रदेशी ही क्या, जीवन का यह अद्भुत तेज प्रत्येक आत्मा में छुपा हुआ है | अध्यात्म-साधना का यही एकमात्र लक्ष्य है, कि उसे जैसे भी हो प्रकट किया जाए । किसी भी प्रसुप्त आत्मा में प्रबुद्ध भाव कब आ जाएगा ? सर्व साधारण की दृष्टि में इसकी कोई तिथि निश्चित नहीं होती । आत्मा में परिवर्तन की प्रक्रिया सतत होती रहती है । क्रूर से क्रूर आत्मा कभी सहसा दयाशील बन जाता है और कभी-कभी दयाशील आत्मा अति क्रूर भी बन सकता है । आपने भारतीय इतिहास में महाकवि बाल्मीकि का नाम सुना होगा । उसका पहला नाम रत्नाकर था और उसका पहला काम लोगों को लूटना एवं मारना था। धन के लिए, न जाने उसने अपने जीवन में कितनी हत्याएँ कीं । उसके पापों की परिगणना नही की जा सकती । वह अपने जीवन की अधम से अधम स्थिति में पहुँच चुका था । मैं पाप कर रहा हूँ और वह किसलिए कर रहा हूँ एवं किसके लिए कर रहा हूँ, इस बात को समझने का भी उसने कभी प्रयत्न नहीं किया । सम्भवतः लूट और मार के अतिरिक्त अन्य किसी भी कार्य को वह नहीं जानता था । संसार में धन से बढ़कर श्रेष्ठ वस्तु उसके लिए दूसरी कोई नहीं थी । किन्तु नारद ऋषि की संगति से जब उसका दृष्टिकोण बदला और उसने यह समझा कि अभी तक मैं अन्धकार में ही डूबा हुआ था, मुझे जीवन का प्रकाश Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001337
Book TitleAdhyatma Pravachana Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1991
Total Pages380
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Spiritual
File Size17 MB
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