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अध्यात्मवाद का आधार | १२३ को परास्त कर देना भी अध्यात्मवादी होने का लक्षण नहीं माना जा सकता । अज्ञान, अविद्या, माया और वासना की चर्चा बहुत की जाती है, परन्तु उसे जीवन से दूर हटाने का कितना प्रयत्न किया गया है, मुख्य प्रश्न यही है । माया को छोड़ने की वचन से बात करना आसान है, शिन्तु मन से माया शो छोड़ना आसान नहीं है। जीवन में दुःख और क्लेश का वातावरण उपस्थित होने पर क्षण भर के लिए वैराग्यशील बनकर संसार की असारता का कथन करना, आजकल एक फैशन बन गया है । जब कभी किसी पड़ोसी के यहाँ पर उसके किसी प्रियजन की मृत्यु हो जाती है, तब उसे धैर्य बँधाने के लिए और उसके उद्विग्न मन को शान्त करने के लिए, उसके प्रति संवेदना प्रकट करने आने वाले लोग, उसे हजारों हजार उपदेश देते हैं, संसार की क्षणभंगुरता का । परन्तु जब अपने ही घर में, अपने ही किसी प्रियजन का वियोग होता है, तब हमारा वह ज्ञान और विवेक कहाँ भाग जाता है । अपने प्रियजन की मृत्यु पर हम अधीर और विह्वल क्यों हो जाते हैं ? क्या यह सब कुछ सोचने और समझने का कभी प्रयत्न किया है ? जिस विवेक और वैराग्य की चर्चा हम अपनी प्रतिदिन वाणी में करते हैं, वह विवेक और वैराग्य हमारे जीवन की धरती पर क्यों नहीं उतर पाता ? इसका कारण एक ही है, कि अभी तक आपके हृदय में आत्मश्रद्धा, आत्म-निष्ठा और आत्म-आस्था उत्पन्न नहीं हुई है । हमने स्वभिन्न पर को समझा है और स्वभिन्न पर के ऊपर विश्वास करना भी सीखा है । परन्तु इसके विपरीत हमने आज तक अपने 'स्व' पर विश्वास करने का प्रयत्न नहीं किया । मैं समझता हूँ जब तक सम्यग् दर्शन नहीं होगा, आत्मप्रीति नहीं होगी, तब तक आत्म-ज्ञान भी नहीं हो सकता, आत्म-बोध भी नहीं हो सकता और जब तक आत्म- बोध नहीं होता है, तब तक आचार और चारित्र भी नहीं होता है । फिर मुक्ति मिले तो कैसे मिले ?
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अध्यात्म शास्त्र में सम्यग् दर्शन और श्रद्धा को जीवन का प्राणभूत सिद्धान्त माना गया है । सामान्य रूप से श्रद्धा एवं श्रद्धान का अर्थ होता है - 'विश्वास करना ।' प्रश्न होता है - 'श्रद्धा एवं विश्वास किस किया जाए ?' उत्तर में कहा जाता है कि - 'तत्वभूत पदार्थों पर ।' तत्वभूत पदार्थों पर श्रद्धा करना ही सम्यग् दर्शन होता है । सम्यग् दर्शन की उक्त परिभाषा में सबसे बड़ी बाधा यह है, कि पदार्थों पर श्रद्धा को सम्यग् दर्शन कहा गया है। संसार में पदार्थ अनन्त हैं, किस पर श्रद्धा की जाए, किस पर विश्वास किया जाए ? यदि कहो कि
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