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साध्य और साधन | १११ में समय-समय पर अपने विभिन्न विचारों को प्रदर्शन करते रहे हैं । एक ने कहा- 'भक्ति से ही मुक्ति मिल सकती है ।' दूसरे ने कहा'ज्ञान से ही मुक्ति मिल सकती है' और तीसरे ने कहा- 'कर्म से ही मुक्ति मिल सकती है ।' भक्ति, ज्ञान और कर्म तीनों को मुक्ति का साधन तो माना गया, किन्तु अलग-अलग करके, खण्ड-खण्ड करके । भक्ति योग की साधना करने वाला भक्त समझता है- 'भक्ति ही सब कुछ है, भक्ति ही परम तत्त्व है ।' ज्ञान-योग की साधना करने वाला साधक कहता है - 'ज्ञान ही सब कुछ है, ज्ञान ही परमतत्त्व है ।' कर्मयोग की साधना करने वाला कहता है - 'कर्म ही सब कुछ है, कर्म ही परमतत्त्व है ।' भक्ति में विश्वास का बल है, ज्ञान में देखने की शक्ति है और कर्म में चलने की शक्ति है । यदि तीनों तीन मार्ग पर भटक जाएँगे, तो कैसे काम चलेगा ? जीवन की समस्या का समाधान इस प्रकार नहीं किया जा सकता ।
कल्पना कीजिए - एक विकट बन है । उस निर्जन वन में संयोगवश पैरों से लाचार एक पंगु व्यक्ति और दूसरा अन्धा एक स्थान पर रह रहे थे । संयोग की बात कि एक दिन वन में भयंकर आग लग गई। पंगु मनुष्य ने देखा, कि आग फैल रही है और अपनी ओर आ रही है । अन्धा इधर-उधर घूम-फिर रहा था कि वह आग की कोर ही बढ़ने लगा । पंगु ने जोर से हल्ला मचाया कि आग है, तो अन्धा घबरा गया, रोने लगा । दोनों के सामने अपने-अपने प्राण बचाने की समस्या थी । परन्तु प्राण कैसे बचें ? जीवन की रक्षा कैसे हो ? अन्धे आदमी में देखने की शक्ति नहीं है । वह चल तो सकता है, किन्तु किधर चलना, और कैसे चलना, यह वह नहीं जानता । पंगु आदमी देख सकता है और वह देख भी रहा है, कि वन में भयंकर आग लगी है और सर्वग्रासी अग्नि कुछ ही क्षणों में हम दोनों को जलाकर भस्म कर देगी । परन्तु वह पैरों से लाचार है, चल नहीं सकता है । अस्तु, दोनों एक दूसरे से यह कहते हैं, परस्पर के सहयोग से ही इस विकट स्थिति में हमारे प्राणों की रक्षा हो सकती है । अन्धे ने पंगु से कहा 'मैं चल सकता हूँ, पर देख नहीं सकता ।' पंगु ने अन्धे से कहा 'मैं देख सकता हूँ किन्तु चल नहीं सकता, क्यों न हम अपने प्राणों की रक्षा के लिए एक दूसरे से सहयोग और सहकार करें ।' आखिर अन्धे ने पंगु को अपने कन्धों पर बैठा लिया और पंगु उसे मार्ग-दर्शन देता
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