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________________ साध्य और साधन | १०७ मित्र का वह पत्र भेजा जा रहा है, उसका पता नहीं लिखा गया, अथवा पता शुद्ध नहीं लिखा गया और उसे पत्र पेटी से यों ही डाल दिया गया, तब क्या होगा ? क्या वह पत्र अपने अभीष्ट स्थान पर पहुँच सकेगा ? क्या वह पत्र उसके मित्र को मिल सकेगा ? कभी नहीं । वह पत्र पोस्ट ऑफिस में पहुँच कर भी रद्दी में डाल दिया जाएगा,, जहाँ उसकी कोई उपयोगिता न रहेगी । सुन्दर कागज, सुवाच्य अक्षर, चमकदार स्याही और लिखने वाले का श्रम केवल इस आधार पर निष्फल हो गया, कि लिफाफे के ऊपर प्राप्त करने वाले का पता नहीं था । इसी प्रकार यदि कोई व्यक्ति अपने जीवन में कठोर साधना करता हो, बहुत बड़ा तप करता हो, निरन्तर जप करता हो, ऊँचे से ऊँचे अध्यात्म-ग्रन्थों का स्वाध्याय करता हो तथा ध्यान और समाधि की दोघं साधना भी वह करता हो; यह सब कुछ करते हुए भी यदि उसे इस बात का परिज्ञान नहीं हो, कि यह सब कुछ मैं किस उद्देश्य की पूर्ति के लिए कर रहा हूँ, तो उसकी वह साधना निष्फल एवं निष्प्राण हो जाती है । बिना लक्ष्य के, बिना साध्य के और बिना ध्येय के किया गया बड़े से बड़ा क्रिया काण्ड और अनुष्ठान भी निष्फल हो जाता है । उसकी यह समस्त साधना उस कोरे लिफाफे के समान है, जिस पर पहुँचने का पता नहीं है । अध्यात्म-शास्त्र में यह कहा गया है, कि किसी भी प्रकार की साधना करने के पहले अपने साध्य को स्थिर कर लो । यदि आप अपने जीवन की यात्रा में जप, तप, संयम और सेवा आदि का परिपालन बिना लक्ष्य को स्थिर किये हुए कर रहे हैं, तो उसका कोई उचित लाभ नहीं होगा । आप यात्रा कर रहे हैं । आपकी यात्रा में आपको कोई दूसरा ऐसा यात्री मिल जाए, जो बहुत दूर से चला आ रहा हो, जो पसीने से तरबतर हो और चलता चलता हैरान एवं परेशान हो चुका हो । यात्री की इस दशा को देखकर आपके मानस में प्रश्न उठा, कि यह कौन है ? और कहाँ जा रहा है ? अपने मन की सतह पर उठने वाले इस प्रश्न को आप रोक नहीं सके और आगे बढ़कर उस यात्री से आपने पूछ ही लिया कि आप कहाँ जा रहे हैं ? इसके उत्तर में यदि वह आपको यह कहे कि मुझे नहीं मालूम कि मैं कहाँ जा रहा हूँ, तो उस यात्री को आप क्या कहेंगे ? आप उसे एक यात्री कहना पसन्द करेंगे अथवा उसे एक पागल कहना पसन्द करेंगे ? एक पागल व्यक्ति भी चलता है और एक समझदार व्यक्ति भी चलता है, किन्तु दोनों के चलने में Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001337
Book TitleAdhyatma Pravachana Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1991
Total Pages380
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Spiritual
File Size17 MB
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