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महावीर
सात
अमर उपदेश
१.
२.
जाए सद्धाए निक्खंते तमेव अणुपालेज्जा, विजहित्ता विसोत्तियं ।
___ -आचारांग १।१।३ जिस श्रद्धा के साथ निष्क्रमण किया है, साधनापथ अपनाया है, उसी श्रद्धा के साथ विस्रोतसिका (मन की शंका या कुण्ठा ) से दूर रह कर उसका अनुपालन करना चाहिए। वीरेहिं एवं अभिभूय दिठें, संजतेहिं सया अप्पमत्तेहिं 1-आचारांग १।१४
सतत अप्रमत्त-जाग्रत रहनेवाले जितेन्द्रिय वीर पुरुषों ने मन के समग्र द्वन्द्वों को पराभूत कर सत्य का साक्षात्कार किया है । तं परिण्णाय मेहावी, इयाणिं णो, जमहं पुव्वमकासी पमाएणं । -आचारांग १।१।४
मेधावी साधक को आत्मपरिज्ञान के द्वारा यह निश्चय करना चाहिए कि .. मैंने अपने गतजीवन में प्रमादवश जो कुछ भूलें की हैं, वे अब भविष्य में फिर कभी नहीं करूंगा।" जे अज्झत्थं जाणइ, से बहिया जाणइ ।
-आचारांग १।१४ जो वस्तुतः अपने अन्दर (अपने सुख दुःख की अनुभूति) को जानता है, वह
४.
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