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महावीर का
जीवन दर्शन
प्रज्ञान का अनंत सागर
भगवान् महावीर ने अपनी लम्बी साधना के द्वारा क्या प्राप्त किया और जनता को क्या दिया ? उनके प्रबोध-प्रवचनों की उपयोगिता उस युग में क्या थी और आज के युग में क्या है ? उनका जीवन दर्शन क्या था और क्या नहीं था ? प्रस्तुत सन्दर्भ में उक्त महत्त्वपूर्ण प्रश्नों पर कुछ चिंतन कर लेना आवश्यक है ।
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पाँच
भगवान् महावीर ने जो सत्य का प्रकाश प्राप्त किया था, उसे शब्दों में अंकित करना आसान नहीं है । बात यह है कि सत्य की अनुभूतियाँ उनकी अपनी थी, अभिव्यक्ति के शब्द हमारे हैं। सत्य की उपलब्धियाँ उनकी थी, अभिव्यक्ति के संकेत हमारे हैं । अतः उनकी दिव्य अनुभूतियों का, विराट् उपलब्धियों का सम्यक् बोध न हमारे विमर्शात्मक ज्ञान से हो सकता है और न हमारी आज की विश्लेषणात्मक वचनपद्धति से ही संभव है । हमारा ज्ञान सीमित है, हमारे शब्दसंकेत अपूर्ण हैं । उनकी प्रत्यक्ष अनुभूतियाँ, हमारे लिए परोक्ष हैं । प्रत्यक्ष अनुभूतियों को परोक्ष अनुभूतियों के द्वारा कैसे अभिव्यक्ति दी जा सकती है ? अनन्त, असीम अनुभूतियों को परिमित एवं अपूर्ण साधनों के द्वारा अभिव्यक्त करना निश्चय ही असंभव है । फिर भी लेखक का दायित्व है कि उसे कुछ न कुछ कहना ही चाहिए । भले ही वह अपूर्ण हो, इससे क्या ? आचार्य सिद्धसेन दिवाकर ने कहा है अबोध शिशु जैसे अपने नन्हे नन्हे
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