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विकासदिशा में अग्रसर था ।
प्रश्न हो सकता है, महावीर को साधना में साढ़े बारह वर्ष जितना लम्बा समय लगा । वह क्यों लगा ? जब ध्यान तत्काल सिद्धि की साधना है, तब क्यों इतनी देर हुई ? ध्यान लगाते हो तत्काल कैवल्य क्यों नहीं हुआ ? बात यह है कि महावीर का ध्यान प्रारम्भ में अन्तर्लीनता की पूर्ण स्थिति तक नहीं पहुंचा था। जो तीव्रता और गति ध्यान में होनी चाहिए थी, वह नहीं हो सकी थी । यही कारण है कि वे आध्यात्मिक शुद्धि की प्राथमिक भूमिकाओं में ही काफी देर तक अटके रहे, आगे नहीं बढ़ सके, समुचित विकास प्राप्त नहीं कर सके । बाहर के तप और त्याग भले ही प्रारम्भ से उग्र एवं तीव्र रहे, परन्तु ध्यान में तीव्रता नहीं आ सकी । क्रमशः अन्तर्लीनता की स्थिति आई, ध्यान में तीव्रता आई, ध्यान ने विकास की गति पकड़ी, अन्तर्लीनता और गहरी हुई, और उसी क्षण अन्तर्जगत कैवल्य के दिव्य आलोक से भर गया । जो काम वर्षों में नहीं हुआ, वह कुछ क्षणों में ही हो गया ।
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विश्वज्योति महावीर
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