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________________ 34 विश्वज्योति महावीर मान और अपमान से, निन्दा और स्तुति से अलिप्त रह कर विभिन्न प्रयोगों के माध्यम से अज्ञात तथ्य को ज्ञात करने की दिशा में प्रामाणिक प्रयत्न करते रहे, जीवन की जटिल समस्याओं के वैज्ञानिक विश्लेषण के आधार पर सही निष्कर्ष निकालते रहे । उनका हर क्षण सत्य की उन्मुक्त खोज में संलग्न रहा । साधना के प्रयोगवीर महावीर के सत्य की खोज परम्परागत पूर्व-विश्वासों के मोड़ पर रुकी न रही, जहाँ कि लोग अकसर रुक जाया करते हैं । तत्कालीन धार्मिक मूल्यों के प्रति एवं साधना की प्रचलित पद्धतियों के प्रति महावीर के मन में व्यामोह नहीं था । शुद्ध सत्य की उपलब्धि के लिए यह आवश्यक भी होता है । अपने स्वतन्त्र प्रयोगों से प्राप्तव्य सत्य के प्रति श्रद्धा रखने वाले साधक परंपरागत सत्यों की सुरक्षा के व्यामोह में नहीं फँसते हैं । स्वानुभूति से लभ्य सत्य के साथ उनका गहरा सम्बन्ध होता है । साधना के सम्बन्ध में महावीर को प्रयोगात्मक पद्धति अभीष्ट थी । मुक्त-साधना पद्धति के द्वारा वे · स्व का अनुसंधान करते रहे, जीवन के अनन्त सौन्दर्य एवं अप्रतिम निरुपाधिक आनन्द की खोज करते रहे । निःसंदेह महावीर केये स्वतन्त्र-प्रयोग सत्य के उदघाटन की दिशा में अत्यन्त महात्त्वपूर्ण रहे हैं । कयोंकि जीवन की यही प्रयोगात्मक स्वतन्त्र खोज एक दिन साध्य से सम्पृक्त होती है, पूर्णता की अभिव्यक्ति का रूप लेती है। महावीर के साधनाकाल सम्बन्धी जो थोड़े से उल्लेख मिलते हैं, उन पर से महावीर की अध्यात्मसाधना की वास्तविक स्थिति का परिचय मिलता है । महावीर की साधना परिवार के परिवेश एवं समाज के प्रचलित नियमोपनियमों से मुक्त थी । उनकी साधना अपने अनन्त स्व से सम्पर्क स्थापित करने की साधना थी, सुप्त स्व को जगाने की साधना थी । सोया स्व जाग जाए, तो अन्य सब प्रश्न अपने आप हल हो जाते हैं । अनन्त चैतन्य प्रबुद्ध करने की साधना में महावीर सर्वथा निर्भय, निर्द्वन्द्व Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001336
Book TitleVishwajyoti Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherVeerayatan
Publication Year2002
Total Pages98
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Sermon
File Size5 MB
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