________________
समभावी साधक : गज सुकुमार
साथ गज सुकुमारजी भी भगवान् की सेवा में जा रहे हैं और रास्ते में ही उसके विवाह की तैयारियाँ हो रहीं हैं । उसके लिए रानियों का निर्वाचन राज-सभा व राज-भवनों में ही नहीं किया जा रहा है वरन श्रीकृष्ण रास्ता तय करते हुए भी उस योजना को हल कर रहे हैं और गज सुकुमार के योग्य कन्या-सोमा को कुंआरे अन्तेपुर में रखने का आदेश देते हैं । इस तरह योजना को सफल बनाते हुए वे भगवान् के समवशरण में पहुँचे ।
वहाँ भगवान की उपदेश-धारा का प्रवाह बह रहा था । उन्होंने गज सुकुमार के लिए कोई विशेष बात नहीं कही । मेघ जब कभी बरसता है तो अमुक भूखण्ड के लिए कोई निश्चित योजना बनाकर नहीं बरसता । वह तो धारा प्रवाह से वर्षा करता है एवं हर प्राणी एवं वस्तु उसे अपने रूप में परिणत करते हैं । वर्षा होते ही बीज अंकुरित हो उठता है । गुलाब उसे सुगन्ध के रूप में परिणत करता है । वही पानी धतूरे के कण-कण में प्रविष्ट होकर मादकता में परिणत हो जाता है और काँटों के पौधे में तीक्ष्ण शूलों के रूप में परिणत होता है । पानी तो सब जगह एक रूप में बरसा; परन्तु जिस जीव का, जिस वस्तु का जो स्वभाव था, वह उसे उसी रूप में आत्मसात् करने लगे । ठीक उसी तरह भगवान की उपदेश धारा सब आत्माओं के लिए समान रूप से प्रवाहित थी, परन्तु सभी श्रोता उसे अपने विचारों के अनुरूप ग्रहण कर रहे थे । वैराग्य
गज सुकुमार जब भगवान के दर्शन करने जा रहे थे, तब उनके मन में कुछ और ही कल्पना चल रही थी । सम्भव है, उसके मन में स्वर्ण-महल के स्वप्न चक्कर काट रहे हों, धूम-धाम के बाजे बज रहें हों, विवाह का रंगीन चित्र चित्रित हो रहा हो । परन्तु जब वह भगवान का प्रवचन सुनकर लौटा तो त्याग-विराग की भावना लेकर आया । उसके विचार बदल गए, भावों में परिवर्तन आ गया, जीवन में एक नया मोड़ आया । उसके त्यागनिष्ठ प्रवाह को बदलने के लिए बहुत प्रयत्न किया गया, परन्तु वे उसमें सफल नहीं हो सके ।।
हाँ, तो गज सुकुमार को एक दिन राजमहल में देखते हैं, फिर साधु बनते हुए देखते हैं और उसी रात श्मशान-भूमि में ध्यानस्थ खड़े हुए देखते हैं । वहाँ मुर्दे जल रहे हैं, चारों ओर सन्नाटा है, आपत्तियों का सागर
% 3A
७६
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org