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________________ सम्पादकीय विश्व - कवि खलील जिब्रान अपनी एक कविता में कहता है, कि : "And you shall hear from us only that which you hear from yourself." ( तुम मुझसे वही बात सुनोगे, जो कुछ तुम अपने अन्दर से सुना करते हो । ) कवि जी भी अपने श्रोताओं से कभी-कभी यही बात कहते थे, कि मेरे पास सुनाने के लिए नया कुछ भी नहीं है । फिर भी लोग कवि जी को सुनना क्यों पसन्द करते थे ? उनकी वाणी में ऐसा क्या जादू है ? कवि जी को सुनने के लिए लोग दूर-दूर से क्यों आते हैं ? बात पुरानी हो अथवा नयी । किन्तु सुनाने की कला उसमें जादू पैदा कर देती है, सुनने वाले को मुग्ध कर देती है । कवि जी के प्रवचनों में कुछ ऐसा ही प्रभाव और चमत्कार मिलता है, कि सामान्य बात को भी वे बड़े विलक्षण ढंग से और अपनी अद्भुत शैली में अभिव्यक्त करते हैं । उनकी प्रवचन शैली का चमत्कार यह है, कि गम्भीर से गम्भीर सिद्धान्त भी सुगम और सुबोध्य बन जाता है । कवि जी महाराज के प्रवचनों की भाषा सरल होते हुए भी अलंकृत, प्राञ्जल और मधुर होती है । प्रत्येक वाक्य अपने आप में एक सुभाषित और सूक्ति का काम करता है । उनकी भाषा कभी भी उनके विचारों के अध्येता के मस्तिष्क पर भार नहीं बनती । उनकी भाषा का प्रवाह तूफानी नदी के समान वेगवान् होकर भी संयत मर्यादित और गम्भीर रहता है । एक दार्शनिक ने कहा है : The great men die but their priceless speeches, words, sayings and writings live in the world like spirits. Their words like the sun can be felt all over the world. व्यक्ति अमर नहीं रहता, परन्तु उसके विचार कभी नहीं मरते । वर्तमान युग को वे प्रेरणा देते हैं और भावी युग को आशा का मधुर सन्देश देते हैं । महापुरुषों की वाणी के प्रत्येक वाक्य में और उसके प्रत्येक शब्द में नव विचारों की ज्योति का आलोक भरा रहता है । न जाने कब और किस समय किस व्यक्ति को उनकी वाणी से प्रेरणा मिल जाए । न जाने, किस प्रसुप्त आत्मा को जागरण मिल जाए । न जाने, किस हताश व्यक्ति को आशा का नव आलोक मिल जाए । कवि श्री जी की Speeches में भी अगणित व्यक्तियों को प्रेरणा, स्फूर्ति, आशा और जागृति मिली है । उनके भाषण, प्रवचन और Speech से समाज ने अमित लाभ उपलब्ध किया है । उनके प्रवचनों से समाज में से अन्ध-विश्वास, रूढ़िवाद और विचारों की जड़ता काफी हद तक दूर हुई है । साध्वी और साधुओं में आज जो नया विचार, नया कर्म और नयी वाणी दृष्टिगोचर हो रही है, उसका अधिकांश श्रेय कवि जी महाराज के उर्वर साहित्य को ही दिया जा सकता है । इस दृष्टिकोण से वे अपने युग के विधाता हैं, अपने युग के अधिनेता हैं, और अपने युग के नव जागरण के अधिचेता हैं । भारत के सुदूर प्रान्तों में उनकी अमर भारती मुखरित हुई है और हो रही Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001335
Book TitleParyushan Pravachan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1994
Total Pages196
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Paryushan
File Size11 MB
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