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द्वितीय संस्करण की भूमिका
को जाता है । उसने काफी परिश्रम करके इस द्वितीय संस्करण को सुन्दर एवं आकर्षक बनाने में सफलता प्राप्त की है ।
द्वितीय संस्करण के पुनः प्रकाशन का श्रेय श्रीयुत बिशन कुमार जी चपलावत को दिया जाना चाहिए। क्योंकि उन्होंने अपने स्वर्गीय पूज्य पिता रतनलाल जी चपलावत एवं अपनी स्वर्गीय माता श्री लाड़बाई जी चपलावत की पुण्यमयी स्मृति में कराया है । श्रीमान् रतन लालजी तथा श्रीमती लाड़बाई चपलावत जी अत्यन्त धर्मप्रिय और परम गुरु भक्त थे । वैसे ही सुन्दर संस्कार, धर्मप्रिय बिशन कुमार जी में भी दृष्टिगोचर होते हैं । इस द्वितीय संस्करण के प्रकाशन का सम्पूर्ण दायित्व आर्थिक एवं भावनात्मक श्री बिशन कुमार जी चपलावत तथा उनकी धर्मपत्नी श्रीमती सरला देवी जी चपलावत ने लेकर सन्मति ज्ञान पीठ, आगरा को चिन्ता-मुक्त किया
मेरे दादागुरु पूज्य प्रवर पृथ्वी चन्द्रजी जी म० और मेरे गुरुदेव राष्ट्र सन्त उपाध्याय कवि रत्न अमर चन्द्र जी म० वर्षों तक आगरा में रहे थे । दोनों की सेवा का भरपूर लाभ श्रीयुत बिशन कुमार जी चपलावत ने लिया था, और अब मेरी सेवा का लाभ ले रहे हैं । कितना सुन्दर संयोग मिला, बिशन कुमार जी को ? निरन्तर तीन पीढ़ियों की सेवा करने का शुभ योग मिलना आसान काम नहीं है । पूज्य श्री जी के विशेष भक्तों में बिशन कुमार जी चपलावत का विशेष स्थान रहा है । साथ में धर्मपत्नी सरला देवी जी चपलावत तथा उनकी प्रियपुत्री श्रीमती नीलम नाहर ने भी सेवा का लाभ प्राप्त किया है ।।
पर्युषण प्रवचन के द्वितीय संस्करण के प्रकाशन का पूरा दायित्व सहर्ष आपने उठाया है । यह उनकी गुरु-भक्ति का प्रबल प्रमाण है । चपलावत जी ने गुरुदेव की समाधि के निर्माण में भी पूरा योगदान किया है । मैं श्रीयुत बिशन कुमार जी चपलावत तथा श्रीमती सरला जी चपलावत को बहुशः साधुवाद देता हूँ, कि उन्होंने सहर्ष प्रस्तुत पुस्तक का सुन्दर प्रकाशन कराया है ।
विजय मुनि शास्त्री जैन भवन, मोती कटरा आगरा
५-५-१६६४
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