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कर्मयोगी श्रीकृष्ण
श्रीकृष्ण का जन्म हुए हजारों वर्ष बीत गए, किन्तु मनुष्य के मस्तिष्क पर आज भी उनकी स्मृतियाँ तरोताजा खेल रहीं हैं । उनके आदर्श और व्यवहार अब भी सजीव-से दिखलाई दे रहे हैं, उनमें प्रेरणा है साहस है
और जिन्दगी को नए मोड़ देते रहने की अविश्रान्त क्षमता है । आज श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के दिन बहुत सुबह ही विचारों में कुछ उथल-पुथल सी होने लगी, और चिन्तन की धारा कर्मयोगी श्रीकृष्ण के जीवन क्षेत्र की ओर बह चली सोचा जो विचारधारा प्रवाहित हो चली है, उसको पूरे वेग से बढ़ाया जाय और चिन्तन मनन के द्वारा नये निर्माण की संभावना पर अधिक निष्ठा पूर्ण ढंग से विचार किया जाय ।
व्यक्ति का मूल्यांकन व्यक्तित्व के आधार पर किया जाता है, और व्यक्ति वह चीज है जिसके उत्पादन खोजने पर इतिहास, परिस्थितियाँ, संस्कार आदि का अध्ययन करना पड़ता है, इन्हीं सबकी छाया में व्यक्तित्व का बीज पलता है, बड़ा होता है और संसार के समक्ष एक महान वट वृक्ष का रूप धारण करके लाखों प्राणियों के लिए आश्रय स्थल बनता है । इस दृष्टि से श्रीकृष्ण के उज्जवलित व्यक्तित्व को परखने के लिए इतिहास की कुछ परतें खोलनी पड़ेंगी । जन्म से पहले मौत का वारंट
श्रीकृष्ण का जन्म उन परिस्थितियों में होता है, जिन पर मौत का दुहरा पहरा खड़ा है । कारागार में जन्म होता है, और बाहर पहरेदारों की नंगी तलवारें उस नवजात शिशु का रक्त पीने को लपलपाती हैं । कंस का कड़ा आदेश था कि बालक का जन्म होते ही उसे मौत के घाट उतार दिया जाय, इस प्रकार जन्म से पहले ही मौत का यह वारंट इतिहास की एक विचित्र घटना है । चारों ओर भय, आशंका और कंस के अत्याचारों का आतंक छाया हुआ है । ऐसी विचित्र परिस्थितियों में श्रीकृष्ण का जन्म होता है । श्रीकृष्ण के जन्म की खुशियाँ नहीं मनाई जाती हैं बल्कि उस उल्लास को छिपाने का प्रयत्न होता है । जिस घड़ी से उसका जन्म होता है, वह घड़ी कितनी विचित्र होगी जब हमेशा मौत का पहरा देने वाले पहरेदार बेखबर हो जाते हैं, और वह अभिमानी
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