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________________ क्रान्तिकारी महापुरुष : श्रीकृष्ण - चाहिए । भगवान और भक्त की आत्मा जब तक एक नहीं होगी तब तक भक्ति और श्रद्धांजलि के सारे उपक्रम व्यर्थ सिद्ध होगें । ____ हमने श्रीकृष्ण को अपनी वासनाओं में ढालने का भी उपक्रम किया है । श्रीकृष्ण के भक्त कहलाने वाले लोग ही उनके भोग-प्रधान चित्रों का प्रदर्शन करते हैं । कैलेन्डरों में छापते हैं और अपने मन की अश्लीलता को उन पर थोपना चाहते हैं । इसलिए मैं अन्त में सब लोगों से यह कहना चाहता हूँ कि उनके चित्रों आदि के साथ भी संयम और शालीनता का व्यवहार किया जाना चाहिए । सिनेमाओं में भी जिस प्रकार श्रीकृष्ण आदि महापुरुषों के साथ अन्याय किया जाता है, वह भी रोका जाना चाहिए । प्रेम में संयम और शालीनता न हो तो विकृत हो जाता है इस सिद्धान्त को सदा ध्यान में रखना चाहिए । यदि हम उन महापुरुषों के आदर्शों को जीवन में उतार सकें, तो यह कृष्णाष्टमी का आयोजन सार्थक होगा और हमारा तथा समाज का कल्याण होगा । ६३ Jain Education International For,Private & Personal Use only www.jainelibrary.org
SR No.001335
Book TitleParyushan Pravachan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1994
Total Pages196
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Paryushan
File Size11 MB
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