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________________ पर्युषण-प्रवचन - - - गम्भीर सागर की गहराई को कैसे नापा जा सकता है ? हम अपनी तुच्छ शब्दावली से उस महापुरुष के अगाध जीवन को व्यक्त नहीं कर सकते । महाभारत और भागवत जिस चरित्र-नायक के चरित्र-चित्रण में पूरे नहीं हो पाये, उस श्रीकृष्ण का वर्णन हम क्या करें ? महाभारत के श्रीकृष्ण भागवत के श्रीकृष्ण में नहीं समा सके और भागवत के श्रीकृष्ण महाभारत में नहीं आ सके । दोनों को मिलाकर ही श्रीकृष्ण का पूरा रूप बनता है । भागवत का श्रीकृष्ण यदि मुरलीधर है तो महाभारत का श्रीकृष्ण सुदर्शनधारी है । श्रीकृष्ण के किसी एकान्तपक्ष को स्वीकार करना या देखना उचित नहीं होगा । दोनों का समन्वय ही श्रीकृष्ण का सही चरित्र है । क्योंकि श्रीकृष्ण के हाथों कभी भी सुदर्शन का दुरुपयोग नहीं हुआ । उनकी बांसुरी ने उनके सुदर्शन पर सदा नियंत्रण रखा । इसीलिए वे अतिमानव बन गए, महामानव बन गए । हम उसी समन्वित रूप के धनी श्रीकृष्ण को याद करें और सुदामा की तरह जो दीन-हीन मानव समाज में उपेक्षित पड़े हैं, उनसे स्नेह करें । उनके साथ सहयोग करें । यदि हम ऐसा करेंगे तो श्रीकृष्ण को याद करना सार्थक हो सकेगा । आज के श्रीकृष्ण सुदामा को भूल जाते हैं । जरा आगे आए, कुर्सियों पर चढ़े कि बस, सुदामा कहीं-के-कहीं रह गए । फिर तो बेचारे सुदामा को पहचानना भी कठिन हो जाता है । इसलिए मैं श्रीकृष्ण को याद करने से पूर्व स्वयं अपने से और आप लोगों से यह कहना चाहता हूँ कि हम समाज के लाखों, करोड़ों सुदामा को भूलें नहीं । यदि ऐसी गलती हम से हुई तो फिर श्रीकृष्ण को याद करना निरर्थक हो जायगा । साथ ही जिस प्रकार सामाजिक और धार्मिक परम्पराओं के नाम पर चलने वाली रूढ़ियों का श्रीकृष्ण ने निरसन किया, उसी प्रकार हमें भी उन रूढ़ियों से लड़ना होगा, उनको समाप्त करना होगा । उनको समाप्त करने के लिए हमें मुरलीधारी नहीं, बल्कि सुदर्शनधारी श्रीकृष्ण को याद करना होगा । ___इन महापुरुषों के याद की भी एक रूढ़ी हो गई है । उनका जन्म दिन या निर्वाण दिन आता है तो हम लोग समारोह कर लेते हैं, भाषण दे देते हैं और श्रद्धांजलि अर्पित कर लेते हैं, फिर उन्हें भूल भी जाते हैं । यदि हमें ऐसा ही करना है तो इस तरह एक दिन मनाना भी निरर्थक ही है । यदि सचमुच हम महापुरुषों को श्रद्धांजलि अर्पित करना चाहते हैं तो उनके सद्गुणों को अपने जीवन में लाने की कोशिश करनी - - ૨ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001335
Book TitleParyushan Pravachan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1994
Total Pages196
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Paryushan
File Size11 MB
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