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________________ पर्युषण-प्रवचन भी लगाता है तथा इसी प्रकार चिकित्सा के दूसरे सब प्रयोग करता है, लेकिन फिर भी यदि घाव दुरुस्त न होगा तो वह आपरेशन करके अन्दर का मवाद बाहर निकाल देता है । वह शल्य-क्रिया-आपरेशन रोगी को मारने के लिए नहीं, बल्कि रोग को खत्म करने के लिए होती है । इसी प्रकार समाज में अन्याय, अत्याचार का कोई जहरीला फोड़ा निकल आए और यदि वह स्नेह और समझौते की चिकित्सा से ठीक न हो तभी कुशल वैद्य की तरह राजा युद्ध के लिए हथियार उठाता है । शस्त्र की मर्यादा यही है कि वह केवल अन्याय के विरुद्ध ही उठाया जाय । . सारांश यह है कि श्रीकृष्ण युद्ध नहीं चाहते थे । पर बाध्य होकर उन्हें युद्ध करना पड़ा । यह दो विरोधी गुणों के समन्वय का ही परिणाम है । कोमलता और कठोरता का सन्तुलन इस सारे प्रकरण में दिखाई पड़ता है । यहाँ कोमलता और नम्रता की जरूरत थी, वहाँ वे एक दूत बनकर भिक्षा मांगने को भी तैयार हो गए और जहाँ कठोरता की जरूरत थी, वहाँ उन्होने कुशलतापूर्वक युद्ध करके विजय प्राप्त की । बांसुरी और सुदर्शन चक्र उनकी कोमलता और कठोरता के प्रतीक बन गए हैं । बल्कि जिस समय सुदर्शन चक्र घूम रहा हो उस समय भी मन और मस्तिष्क पर बांसुरी की मधुरता का प्रभाव रहना चाहिए और जिस समय बांसुरी बज रही है, उस समय भी सुदर्शन चक्र की शौर्यता का प्रभाव रहना चाहिए । यदि ऐसा संतुलन नहीं सधता तो राष्ट्रीय जीवन सुरक्षित नहीं रह सकता था । दावानल पी गए श्रीकृष्ण के दावानल पी जाने की एक कथा आती है। जब उन्होंने देखा कि जंगल की भीषण अग्नि में गायें और ग्वाले, पशु-पक्षी और नर-नारी झुलसते जा रहे हैं तो वे उस दावानल को पी गए । यह एक स्थूल उदाहरण है । इसे वास्तविकता की अथवा तर्क की कसौटी पर कसने की आवश्यकता नहीं है । यह एक रूपक है । मानव के मन में द्वेष और घृणा का एक भयंकर दावानल जलता रहता है । उस दावानल को पी जाने की बात ही महत्व की बात है । हम आज भी देखते हैं कि समाज में द्वेष का वह दावानल जब कभी भड़क उठता है । जब तक द्वेष के ये दावानल पीए नहीं जायेंगे, तब तक शान्ति कैसे होगी ? इस दावानल को पीना ही महत्व की बात है । श्रीकृष्ण निरन्तर समाज - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001335
Book TitleParyushan Pravachan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1994
Total Pages196
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Paryushan
File Size11 MB
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