SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 70
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ क्रान्तिकारी महापुरुष : श्रीकृष्ण की आग को शान्त करने के लिए स्वयं अपमान, घृणा और तिरस्कार सहते रहे । शंकर ने गरल पान किया । वह गरलं समुद्र मंथन से निकला हुआ स्थूल गरल ही था या और भी कुछ था, यह समझने की बात है । देवता गण इसी स्थूल गरल से भयभीत थे ? क्या एक बार उस स्थूल गरल को पी जाने मात्र से देवता गण कष्टों से मुक्त हो गए ? सच तो यह है कि समाज में फैली राक्षसी वृत्तियों के गरल को पीकर ही शंकर ने देवताओं को कष्ट मुक्त किया । इन सब घटनाओ को समझने के लिए स्थूल शब्दों और विवरणों में जाने की जरूरत नहीं है । उस घटना के पीछे जो भावना है, उसे समझने की आवश्यकता है । यदि ऐसी उदात्त दृष्टि से हम सोचेंगे तो शंकर के गरल पीने का रहस्य तुरन्त समझ में आ जायगा । आश्चर्य है कि नित्य अमृत पान करने वाले देवताओं की उतनी पूजा नहीं होती, जितनी गरल पान करने वाले शंकर की पूजा होती है । अमृत पीने वाले देव होते हैं और गरल पीकर शंकर महादेव कहलाते हैं । इसी तरह श्रीकृष्ण के दावानल पीने की बात है । धेनुकासुर वध श्रीकृष्ण के जीवन में धेनुकासुर के वध की घटना आती है । एक राक्षस धेनु का रूप बनाकर श्रीकृष्ण के सामने आया और उन्होंने उसका वध किया । धेनु शब्द प्रतीकात्मक और आलंकारिक है । इस घटना का आशय यही है कि जब साधारण मनुष्य के सामने अधर्म धर्म का बाना पहनकर आता है और दम्भ तथा शोषण भी सदाचार को मनोहर रूप धारण करके प्रकट होते हैं, तब मनुष्य विभ्रम में पड़ जाता है । वह फैसला नहीं कर पाता कि क्या करे और क्या न करे । मनुष्य राक्षस से तो लड़ सकता है पर जब राक्षस ही मनुष्य का बाना पहनकर आ जाय तो कठिनाई पैदा हो जाती है । हम यह देखते हैं कि आज समाज में बहुत सी रूढ़ियाँ और अन्ध विश्वास मूलक परम्पराएँ इस तरह की आ गयी हैं कि जिनसे छुटकारा पाना बहुत कठिन मालूम देता है । इसका कारण यही है कि उन गलत परम्पराओं को ठोकर लगाने का मतलब होता है, धर्म को ठुकराना । ऐसा अधर्म बहुत खतरनाक होता है, जो वास्तव में धर्म न होते हुए भी धर्म की तरह चलने लगता है । धेनुकासुर का भी यही रूप सामने आया । श्रीकृष्ण को गाय से बहुत ५६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001335
Book TitleParyushan Pravachan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1994
Total Pages196
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Paryushan
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy