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________________ पर्युषण-प्रवचन ग का सबसे बड़ा महापुरुष कौन है ? खूब चर्चा हुई । चर्चा के बाद निणय देने का अधिकार पितामह भीष्म को दिया गया । भीष्म ने कहा इस युग का सबसे बड़ा महापुरुष श्रीकृष्ण है । सबसे पहला निमन्त्रण उन्हीं को मिलना चाहिए और उनकी ही सबसे पहले पूजा होनी चाहिए । निःसन्देह श्रीकृष्ण महापुरुष थे । केवल उस युग के ही महापुरुष नहीं, वे युग-युगान्त के महापुरुष थे । श्रीकृष्ण को भगवान के रूप में स्वीकार करने में किसी को आपत्ति हो सकती है, पर वे विश्व के महापुरुष थे, यह स्वीकार करने में किसी को कोई आपत्ति नहीं हो सकती । फिर भी वे पांडवों के दूत बनकर दुर्योधन के द्वार पर पहुँच गए, और उन्होंने कहा—'दुर्योधन । समझने की कोशिश करो ।' परिस्थितियों का चक्र घूमता जा रहा है । यह कौरव-वंश मृत्यु के मुख में जाए, इससे पहले तुम उसे बचा लो । भारतवर्ष के समस्त वंश युद्ध के दावानल में झुलस सकते हैं । इसलिए तुम बुद्धि से काम लो । सृष्टि के सौन्दर्य को जलकर खाक होने से रोको । युद्ध केवल क्रूरता का प्रतीक है । यदि युद्ध होगा तो देश की समस्त महत्त्वपूर्ण शक्तियाँ समाप्त हो जायेंगी । सोचने की कोशिश करो दुर्योधन । क्या तुम हजारों, लाखों मां-बहनों को पुत्र एवं पति वियोग में चिल्लाकर रोते हुए और आँसू की नदियाँ बहाते हुए देखना पसन्द करोगे ? क्या तुम लाखों सुन्दर और बुद्धिमान युवकों की लाशें युद्ध भूमि में सड़ती हुई देखना चाहोगे ? इसलिए परिस्थिति की गंभीरता को समझो और हिंसा का तांडव नृत्य होने से पहले सम्हल जाओ । मैं नहीं चाहता कि युद्ध की बीभत्स चिनगारी में देश बर्बाद हो । मैं नहीं चाहता कि भाई-भाई का गला काटे । मैं नहीं चाहता कि आदर योग्य बुजुर्गों के खिलाफ उन्हीं की संतान हथियार उठाए । यह सौदे का सवाल नहीं है । 'मैं तुमसे झोली पसार कर भिक्षा मांगता हूँ और प्रार्थना करता हूँ कि देश को युद्ध से बचा लो पांडवों को राज्य नहीं चाहिए, वैभव नहीं चाहिए । मैं उन्हें गांवों में रहने के लिए तैयार कर लूँगा । उनके रहने के लिए सिर्फ पांच गांव भर दे दो ।' श्रीकृष्ण की यह प्रार्थना जाहिर करती है कि वे युद्ध नहीं चाहते थे । युद्ध टल जाय, इसीलिए उन्होंने विशाल साम्राज्य के बटवारे का मोह छोड़ दिया और केवल गांवों पर ही फैसला करने को तैयार हो गए । यह फैसला भी अधिकार के रूप में नहीं, बल्कि भिक्षा के रूप में उन्होंने प्रस्तुत किया था । इस स्थिति में हम श्रीकृष्ण की उत्तम मानवता के दर्शन करते हैं, उनके उस eme - - - - - - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001335
Book TitleParyushan Pravachan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1994
Total Pages196
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Paryushan
File Size11 MB
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