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________________ वैराग्य मूर्ति : गौतम कुमार जो देखा-देखी साधना करता है, उसका शरीर ही छीजता है । साधना का आनन्द वह प्राप्त नहीं कर सकता । संसार में जितने भी साधक हुए हैं, उन्होंने पहले अपने गुरु के चरणों में बैठकर अध्ययन किया है । वह अध्ययन क्या है ? वह अध्ययन है भेद विज्ञान का । यह शरीर और है और आत्मा और है । दोनों एक नहीं हैं, क्योंकि दोनों का स्वभाव सर्वथा भिन्न है । देह और देही का भेद विज्ञान हो जाने पर ही साधना सफल होती है । मैं आप से गौतम कुमार की बात कर रहा था । उस गौतम कुमार की, जो द्वारिका नगरी का रहने वाला था, परन्तु भगवान् अरिष्टनेमि की वाणी सुनकर प्रबुद्ध हो गया था और उनके मार्ग पर चलने को तैयार हो गया था । कथा सूत्र है... "अणगारे जाए, इरिया समिए जाव निग्गंथं पुरओ काउ विहरइ ।" माता और पिता की अनुमति मिलने पर गौतम कुमार भगवान के श्रीचरणों में दीक्षा लेकर साधना में लग गया । भिक्षु बन कर उसने क्या किया ? यह प्रश्न सहज है । आगे का कथा सूत्र इस प्रकार है “अरिट्ठनेमिस्स थेराणं अन्तिए सामाइयमाइयाइं एकारस्स अंगाई अहिजइ, अहिन्जित्ता बहूहिं चउत्थ जाव अप्पाणं भावेमाणे विहरइ ।" अरिष्टनेमि भगवान के स्थविरों के पास रहकर गौतम कुमार ने पहले ग्यारह अंगों का अध्ययन किया, अध्ययन करके विविध प्रकार का तप किया । अपनी आत्मा को पावन एवं पवित्र बनाया । अध्ययन और तप करते हुए राजकुमार गौतम द्वारिका नगरी में विहार भी करते रहे, दूर देशों में घूमते रहे । एक राजकुमार होकर, दूर देशों में नंगे सिर और नंगे पैर घूमना साधारण बात नहीं है । कुसुम जैसे कोमल पैरों में तीखे काँटे लगते होंगे । भूख और प्यास भी लगती होगी । यह साधना तलवार की धार पर चलना है । "असि-धारा-व्रतम् ।" शरीर साधने से पहले मन को साधना बहुत आवश्यक है । गौतम ने मन के साथ में शरीर को भी साधा था । राजकुमार गौतम कठिन साधना के मार्ग पर अन्त तक चलते रहे । वह एक ऐसा प्राणवन्त साधक था कि घर छोड़ा तो कभी घर की याद नहीं की । काँटों की राह पर चलता रहा । दुःख-पीड़ाएँ आती रहीं और जाती रहीं । परन्तु गौतम कुमार अचल हिमालय की भाँति अडिग और अडोल रहा । साधना के मार्ग पर उसके कदम निरन्तर आगे बढ़े, पीछे नहीं हटे । वह अपनी अध्यात्म-साधना - ४३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001335
Book TitleParyushan Pravachan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1994
Total Pages196
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Paryushan
File Size11 MB
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