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पर्युषण-प्रवचन
में इतना लीन और एकाग्र था कि उसे यह भी पता नहीं रहा कि मैं द्वारिका का राजकुमार हूँ और मैंने भोग विलासमय जीवन व्यतीत किया है । अब इस कँटीले मार्ग पर कैसे कदम रखू ? वह सिंह के समान आगे बढ़ता ही रहा । भिक्षु प्रतिमा
__ एक बार साधक गौतम के मन में विचार आया कि मैं भिक्षु प्रतिमाओं की साधना करूँ । यह साधना, बड़ी कठोर साधना है । यह एक विशेष प्रकार का तप है । कथा-सूत्र है___"इच्छामिणं भन्ते ! तुब्भेहिं अब्भणुण्णाए समाणे मासियं भिक्खु-पडिमं उवसंपज्जित्ताणं विहारेत्तए।" भगवान अरिष्टनेमि के श्री चरणों में उपस्थित होकर गौतम ने कहा-"भगवन् ! यदि आपकी आज्ञा हो तो मैं भिक्षु की प्रतिमाओं की साधना करना चाहता हूँ ।" गौतम ने भगवान् की आज्ञा से भिक्षु की बारह प्रतिमाओं की साधना की । कोई बिरला ही साधक इसकी साधना कर पाता है । भगवती सूत्र में वर्णित स्कन्धक मुनि की भाँति गौतम ने भी क्रमशः द्वादश प्रतिमाओं की कठोर साधना की ।।
व्रत करना कठिन, किन्तु व्रत का पारणा व्रत से भी कठिन माना गया है । यह एक अनुभव की बात है कि मनुष्य तप तो कर लेता है, परन्तु पारणा के दिन जब वह अपने घर पहुँचता है तब पारणा में कुछ विलम्ब होने पर वह उत्तेजित हो जाता है । व्रत में एक दो दिन निकालना उसके लिए आसान था, पर व्रत के पारणा के दिन एक पल का भी विलम्ब वह सहन नहीं कर सकता । उसके धैर्य का बाँध टूट जाता है । तप की बात सुनना आसान है, पर जीवन में उतारना बड़ा कठिन है । तप का अर्थ है-इच्छाओं का दमन । जिसने अपनी इच्छाओं का दमन किया, वही सच्चा तपस्वी है । गुणरत्न तप ____ मैं आपसे कह रहा था कि गौतम कुमार जितना सुकुमार था, उतनी ही अधिक उसने तपस्या की । भिक्षु की द्वादश प्रतिमाओं की साधना करने के बाद उसने गुणरत्न तप की साधना प्रारम्भ की । भगवती सूत्र में वर्णित स्कन्धक मुनि के समान गौतम मुनि ने भी अधिक उग्र तप करने का संकल्प किया । संकल्प में अपार बल होता है । शरीर में
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