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पर्युषण -:
-प्रवचन
रामकृष्ण, गौतम आदि की पवित्र स्मृतियाँ हमारे में बनी रहेंगी और कागज के फटे पुराने पन्नों पर दो चार पंक्तियाँ भी उनकी वाणी को प्राप्त होती रहेंगी, हम झोंपड़ी में खुले आकाश के नीचे था महलों में चाहे जहाँ कहीं भी रहते हों अजर-अमर बने रहेंगे । यह पूर्वजों की स्मृतियों का ही सम्बल है कि हम हर परिस्थिति में हँसते हुए आगे बढ़ते रहते हैं ।
जब तक हमारे भाई बहन रहनेमि और राजीमती के कदमों पर चलते रहेंगे, सीता और अंजना को नहीं भूलेंगे । उन्हें कोई भी, किसी भी परिस्थिति में विचलित नहीं कर सकेगा जब तक युवकों के मानस को गज सुकुमार और चन्द्रगुप्त की स्मृतियाँ बाँधे रखेंगी उन्हें कहीं भी परास्त नहीं होना पड़ेगा । भारत के लोगों में जब तक दानवीर भामाशाह आदि की याद बनी रहेगी — जिन्होंने देश की स्वतन्त्रता के लिए कौड़ी - कौड़ी निछावर कर दी और जब तक धन कुबेरों में जैनों के दान की शक्ति और परम्परा बनी रहेगी, तब तक भारत और भारतीय समाज को कोई भी शक्ति नष्ट नहीं कर सकेगी । जब तक ये प्रकाश स्तम्भ उसकी आँखों के सामने जगमगाते मार्ग दिखाते रहेंगे, तब तक यह देश और समाज उच्चता के शिखर पर आरूढ़ रहेगा ।
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इतिहास का विकृत रूप
भारत में आने वाले विदेशियों, पाश्चात्यों ने भारत की जमीन को जीता, नगरों और सिंहासनों पर अधिकार किया, फिर भी वे हमेशा डरते ही रहे कि कहीं प्रबुद्ध भारत से भागना न पड़े । इसी कारण से उन्होंने भारत के इतिहास को तोड़ने मरोड़ने का यथासम्भव प्रयास किया । उन्होंने भगवान महावीर, बुद्ध, राम, कृष्ण आदि को गलत रूप में उपस्थित कर हमारे पूर्वजों को पुनीत एवं महान् स्मृतियों को विकृत करने का प्रयत्न किया । हम जिन्हें राणा प्रताप और शिवा के रूप में याद करते हैं, उन्हें 'पहाड़ी चूहा' कहा गया, और यह भी बताया कि आर्य भारत में बाहर से आए थे और गड़रिए थे । जब वे भारत में आये तो पाया कि यह बहुत ही अच्छा देश है, और यहाँ पड़ाव डाल कर बस गये, आदिवासियों को मारा और खदेड़ कर बाहर किया । उन्होंने लोगों के मानस में यह विचार जमाने का प्रयास किया कि तुम भी इस भूमि के मूल निवासी नहीं हो, जैसे हम यहाँ बाहर से आए हैं वैसे ही तुम भी
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