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हमारे प्रेरणास्रोत : इतिहास के उज्वल पृष्ठ
बाहर से आए हुए हो, हम भी विदेशी और तुम भी विदेशी ! कोई पहले आया और कोई पीछे आया ।
भगवान महावीर, बुद्ध आदि के इतिहास को भी उन लोगों ने बहुत गलत रूप से उपस्थित किया । एक बार इतिहास के एम. ए. के एक विद्यार्थी ने कहा कि उसने इतिहास के अध्ययन और अनुसन्धान में भगवान महावीर के बारे में एक नई खोज की है । उसने बताया कि भगवान महावीर ने गृहस्थ जीवन को छोड़कर धर्म के नाम पर या त्याग के नाम पर साधुत्व नहीं लिया, बल्कि मर्म यह है कि वह दो भाई थे और राज्य का उत्तराधिकार उनके बड़े भाई नंदी वर्धन को मिला, तथा महावीर को कुछ नहीं मिला, इससे रूठ कर साधु बन गये । यह गजब की अजीब खोज है । बुद्ध के बारे में भी बताया कि वह कायर था, उत्तराधिकार निभा नहीं पाया तो भाग गया । इस प्रकार उसने अपनी खोज की । अज्ञान मूलक - सनक में महापुरुषों को भी भगोड़े बताया । ऐसी बातों, चर्चाओं और दलीलों के बारे में जब हम विचार करते हैं तो यही निष्कर्ष निकलता है कि जब तक हम अपने इतिहास का ठीक संशोधन करके उसका सही रूप नहीं दिखाएँगे, घटनाओं तथा उनके कारणों की तह में जाकर विचार परम्परा और संभवता के आधार पर उसका मूल्यांकन नहीं करेंगे, तब तक अपने पूर्वजों को उचित श्रद्धाञ्जलियाँ अर्पित नहीं की जा सकतीं । इतिहास का अध्यापन नये सिरे से करके उन्हें नये और स्वतन्त्र दृष्टिकोण से परखने पर ही हम इतिहास का सही रूप संसार के समक्ष रख सकेंगे ।
इतिहास की फल श्रुति
पर्युषण के समय महापुरुषों के जीवन का हमें प्रकाश मिल रहा है । उनके जीवन चरित्रों, कथानकों द्वारा आदर्शों की उज्ज्वल किरणें हमारे मानस पर छाया हुआ अंधकार मिटा रही हैं तो हम सभी लोग जहाँ हो सके अधिक से अधिक त्याग, तपस्या, सेवा, दान, दया आदि किसी भी रूप में कोई श्रद्धांजलि उन महापुरुषों और उन पूर्वजों के चरणों में अर्पण कर सकते हैं । ऐसा न हो कि यह पर्युषण आया और यों ही चला जाय । अपने गौरवपूर्ण इतिहास का स्मरण करो, अध्ययन करो और इसको अन्तर्मन की गहराई में भी उतारो । हमारे महापुरुष, जो इस पावन पर्व के प्रसंग पर हमारे मन के द्वार पर आकर खड़े हो जाते
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