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________________ हमारे प्रेरणास्रोत : इतिहास के उज्ज्वल पृष्ठ मल्हार गीत गाने की शक्ति का अनुभव होता है । मुझे जब स्वयं मुनि जीवन के प्रथम लोच के अवसर पर कष्ट का अनुभव हुआ तो जैसे ही गज सुकुमाल और खन्धक की स्मृतियाँ जगीं कि आत्मा आनन्द ही आनन्द से ओत-प्रोत हो उठा । अनन्तः बार जब-जब नरक में गये, शरीर के टुकड़े-टुकड़े किए गये । अनेक बार पशु योनि में खाल खींची गई । जब शूकर बने तो शरीर का एक-एक बाल खींचा गया । इस प्रकार दुःख और द्वंद्व तो बहुत भोगे, किन्तु वे अपनी इच्छा या स्वतन्त्रता से नहीं, बल्कि अज्ञानता और परवशता के बन्धन में बँधकर भोगे । इसी प्रकार नरक में सड़ते रहे, भूख की आग लगी रही, प्यास से तड़फते रहे, किन्तु उनसे कोई लाभ नहीं हुआ ? इन सारी प्रक्रियाओं को अनिच्छा पूर्वक अज्ञानता में और बिना साधना के करते रहे, इसी से बन्धनों को तोड़ने के बदले, बढ़ाते ही रहे । परन्तु जब हम स्वतंत्र इच्छा के आधार पर और साधना के विचार से उपवास करते हैं, भूखे-प्यासे रहते हैं तो मन हर्ष से नाच उठता है और जो लोग दिनभर मुँह में कुछ न कुछ डालते रहते हैं, वे भी जब उपवास का संकल्प लेते हैं तो यह कितना महान् आत्मबल होगा । आज के आलोचक, भले ही कुछ कहें, अन्तर्गत टीका टिप्पणी करें । परन्तु मैं तो उनकी भावनाओं और मनोबल का आदर करता हूँ । संकल्प, इच्छा और विचार के आधार पर जो त्याग किया जाता है, उसमें कष्ट के बजाय आनन्द की अनुभूति होती है, आत्मा प्रफुल्लित रहती है । जब कि अनिच्छा और परवशतापूर्वक की जाने वाली क्रियाओं में अपार कष्ट का अनुभव होता है एवं आत्मा कुंठा से घुटती रहती है । इससे यह स्पष्ट होता है कि इसके पीछे कहीं न कहीं कोई शक्ति का स्रोत अवश्य है और वह कहीं बाहर से नहीं आकर अन्तर में ही प्रकट होता है, वह शक्ति मानसिक प्रेरणा और भावना से ही जगती है । और उस भावना का आधार है—हमारा उज्जवल इतिहास ! हमारे पूर्वजों का गौरवपूर्ण जीवन चरित्र ! प्रकाश-स्तम्भ इतिहास की वे घटनावलियाँ हमारे लिए प्रेरणादायी हैं, और हर अंधकार की वेला में प्रकाश स्तम्भ का काम देती हैं । खंधक, गौतम, शालिभद्र, स्थूलिभद्र, राजुल, मृगावती, चन्दनबाला आदि की शुभ ज्योतियाँ हमारे इतिहास की गौरवपूर्ण कलियाँ हैं । जब तक भगवान महावीर, २३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001335
Book TitleParyushan Pravachan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1994
Total Pages196
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Paryushan
File Size11 MB
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