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________________ पर्युषण-प्रवचन किन्तु माता-पिता आदि के दुर्व्यवहार से उनकी उस शक्ति की भ्रूण हत्या कर दी जाती है । विकास को अवरुद्ध कर दिया जाता है और वह हीन भावना का शिकार होकर जीवन से परास्त हो जाता है । __ इसके विपरीत यदि बच्चे की पीठ ठोंक दी जाती है, उसे शेर बहादुर कहकर हौंसला बँधा दिया जाता है तो वह विकट से विकट कार्यों में भी बिना तनिक परवाह किए जुट पड़ता है । उसका साहस और शौर्य, जिस पर अज्ञान की राख जमी पड़ी थी इस फूंक से प्रज्वलित होकर चमक उठता है । इसके विपरीत यदि उसमें हीन भावना का सूत्रपात कर दिया जाय तो फिर वह उठ नहीं सकता, फिर उसकी प्रगति और विकास की कामना करना कोयले पर फूंक मारने के समान होगा । आत्म-विश्वास की लौ बुझ जाने के बाद जल्दी से जगाना कठिन होता है । आत्मा को जगाओ बच्चे की तरह ही प्रत्येक साधक की आत्मा है, भारत के दर्शनों ने साधक की आत्मा को जगाने के लिए सबसे पहला यही संदेश दिया है कि तुम अपनी अनन्त और विराट शक्ति एवं सत्ता पर विश्वास करो । तुम कौन हो ? तुम्हारे अन्दर क्या-क्या शक्तियाँ छिपी हैं ? क्या तुम जान पाये हो ? तुम सिर्फ लाल, पीली, गोरी मिट्टी पिण्ड मात्र नहीं हो, तुम आत्मा हो और तुम्ही परमात्मा हो । तुममें अनन्त शक्तियाँ भरी पड़ी हैं । किन्तु दुर्भाग्य केवल इतना ही है कि तुम अज्ञान, माया, मोह और वासना की गाढ़ निद्रा में सोए हुए हो ? आत्मा के सो जाने पर सारी शक्तियाँ सो जाती हैं और जग जाने पर जग जाती हैं । वन का शेर जब सो जाता है तो वन के सभी छोटे-मोटे जीव जन्तु इस प्रकार उछल कूद में मस्त हो जाते हैं कि उन्हें पता ही नहीं रहता कि यहाँ पर शेर भी सोया हुआ है, किन्तु जैसे ही शेर जगता है और अंगड़ाई लेकर एक बार दहाड़ता है तो उसके गर्जन से सारा क्षितिज गूंज उठता है और चारों ओर सन्नाटा छा जाता है । शेर तो जब नींद में सोया हुआ था तब भी शेर ही था और उसकी समस्त शक्तियाँ भी उसी के पास थीं, कहीं बाहर तो गईं नहीं थीं, किन्तु उसकी शक्तियों पर तन्द्रा का नशा छाया हुआ था और अब जागृति आ गई है । शेर के जगते ही तो सारी शक्तियाँ और चेतना जग उठीं । इसी प्रकार आत्मा के जग जाने पर अन्तर में क्रान्ति आ जाती है, समस्त Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001335
Book TitleParyushan Pravachan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1994
Total Pages196
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Paryushan
File Size11 MB
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