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हमारे प्रेरणास्रोत : इतिहास के उज्ज्वल पृष्ठ
शक्तियाँ अँगड़ाई लेकर चैतन्य हो जाती हैं । और जब आत्मा सो जाती है तो चारों ओर क्रोध, लोभ, अभिमान, माया, मोह, विकार, राग द्वेष आदि हुड़दंग मचाने लग जाते हैं, किन्तु ज्यों ही आत्मा जगी नहीं कि वे सब कहीं गायब हो जाते हैं । आत्मा का कण-कण आलोकित हो उठता है और सर्वत्र दया, करुणा, क्षमा, सरलता आदि सद्गुणों का रमणीय रूप ही नजर आता रहता है ।
भारतीय चिंतन धारा में सदा इस महत्वपूर्ण पहलू पर बल दिया है कि आत्मा का दर्शन करो । आत्मा को जगाओ । इसके भीतर अनन्त शक्तियों का भण्डार भरा है । ज्ञान का सम्पूर्ण प्रकाश छिपा है और परमात्मा का रूप निहार रहा है । भगवान महावीर ने कहा है कि अप्पा सो परमप्पा – आत्मा सो परमात्मा - तुम भगवान हो, तुम्हारे में अब भी ईश्वरत्व का अंश है । इसलिए अपनी हीन मनोवृत्तियों को समाप्त करके इस गाढ़ तन्द्रा को तोड़ो और आत्मा को जगाओ । तुम्हारी शक्तियाँ स्वतः प्रकट हो जाएँगी । तुम पूर्ण परमात्मपद पर प्रतिष्ठित हो जाओगे । आत्म- गौरव
जब तक आत्मा सोता रहता है तब तक अनेक बाहरी शक्तियाँ आत्मा पर हावी होकर उसके शुद्ध स्वरूप को प्रकट नहीं होने देतीं, किन्तु जब उसे अपने स्वरूप का भान होता जाता है तो आत्मगौरव की भावना उसमें जागृत हो जाती है और वह बाहरी शक्तियों को तत्काल पछाड़ देता है । इस सम्बन्ध में एक कहानी है कि एक क्षत्रिय कहीं जा रहा था । रास्ते में एक दूसरा आदमी मिल गया दोनों साथ-साथ चल रहे थे, किसी कारणवश दोनों में परस्पर तकरार हो गई और झगड़ पड़े । दूसरे व्यक्ति ने क्षत्रिय को पछाड़ दिया । क्षत्रिय ने पुनः अपना होश सँभाला तो उससे पूछा कि तुम कौन हो ? इस पर उसने बताया कि मैं चमार हूँ ? यह सुनते ही क्षत्रिय का क्षात्र तेज चमक उठा - चमार होकर इतनी हिम्मत ! आओ अभी तुझे बताता हूँ । मुझ क्षत्रिय से कैसे भिड़ सकता है ? क्षत्रिय में ज्यों ही अपना आत्म गौरव जगा और चमार में अपने प्रति हीन भावना उठी कि "अरे ! मैं क्षत्रिय से भिड़ गया" ? दोनों परस्पर भिड़े और तत्काल क्षत्रिय ने चमार को पटक पछाड़ा । क्षत्रिय में उदात्त भावना जगी, आत्म गौरव का तेज चमका और चमार में हीन भावना का संचार हुआ तो वह लड़खड़ा गया, और क्षत्रिय
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