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पर्युषण-प्रवचन
प्रकृति का मूल कारण : विनय
नम्र व्यक्ति ही अपने आपको ऊँचा उठा सकता है, उसकी आत्मा में सद्गुणों का प्रकाश फैल सकता है । जो दूसरों का, अपने आदरणीय-जनों का सम्मान करता है, वह सर्वत्र सम्मान का अधिकारी होगा । वैदिक संस्कृति में आचार्य मनु कहते हैं :
अभिवादन-शीलस्य नित्यं वृद्धोपसेविनः ।
चत्वारि तस्य वर्धन्ते आयुर्विद्यायशोबलम् ॥ __ जो लोग बड़ों की छत्रछाया में नम्र रहते हैं, संयम और तप-त्याग की राह पर चलने वाले महापुरुषों के पद-चिन्हों का अनुसरण करते हैं, उनका जीवन चमक उठता है । गुरुजनों के प्रति नमस्कार करने वाले व्यक्ति के जीवन में चार वस्तुओं की उपलब्धि और अधिकाधिक वृद्धि होती है । उनकी ये चारों वस्तुएँ विराट् इतिहास में हजारों-हजार वर्ष तक संसार को प्रकाश देती रहती हैं । वे चारों वस्तुएँ कौन-सी हैं ?
'आयुर्विद्या यशोबलम् ।' विनयी व्यक्ति का जीवन एक प्रकाश-स्तम्भ की भाँति चमकता रहता है । वह जीवन के क्षेत्र में केशरी सिंह की भाँति गरजता है, वह अन्याय, अत्याचार, घृणा, द्वेष आदि संसार के पापाचारों से संघर्ष करता है । उसकी आवाज जीवन की आवाज होती है, उसका जीवन शानदार जीवन होता है ।
जीवन तो सभी जीते हैं, गन्दी मोरी के कीड़ों के पास भी जिन्दगी है, उन्हें अपनी इस नन्ही-सी जिन्दगी से प्यार भी बहुत है, जरा-सी चोट लगने पर वे अपनी सारी शक्ति जीवन की सुरक्षा में लगा देते हैं, पर उस जिन्दगी का क्या मूल्य है ? जिन्दगी कौओं के पास भी है, चीलों के पास भी है, गिद्धों के पास भी है और उन्हें अपनी जिन्दगी सर्वाधिक प्रिय है । लेकिन उस जिन्दगी का मूल्य क्या है ? कौआ इधर-उधर जूठन पर घूमता रहता है, चील आसमान में चक्कर काटती रहती है । मुर्दा-शरीरों पर मंडराती रहती है, गिद्ध भी इसी खोज में घूमते रहते हैं कि कब कौन मरा ? वन में कोई लाश पड़ी हो, तो वहीं सब एकत्रित होकर पहुँच जाते हैं । ऐसी स्थिति में आप विचार करें कि उस जिन्दगी और उसके प्यार का क्या मूल्य है जीवन में ? जिन्दगी तो तिर्यञ्च प्राणियों को भी मिली है, असुर, दैत्य, और राक्षसों को भी मिली है, जो दूसरों
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