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________________ मार्ग और मंजिल भरना है, यदि इस महल को ठीक तरह से भर सके तो मेरी अन्तरात्मा को शान्ति मिल सकेगी । दोनों ही चल पड़े । एक उनमें से शरीर से तो ठीक और सुन्दर था, किन्तु विचारों से क्षुद्र था । वह विचारने लगा, आठ आने में सारे महल को किस प्रकार भरा जा सकता है ? कुछ समझ में नहीं आया तो सोचा बुढ़ापे में उसका बाप भी पागल हो गया है । अब उसके पागलपन को किस प्रकार दूर किया जाय ? नगरपालिका के कूड़े की गाड़ी को देखकर उसे हर्ष हुआ और उसने गाड़ी वाले को ही आठ आने देकर महल को कूड़े से भर देने की जिम्मेदारी दे दी । गाड़ी वाला मेहतर भी इसकी सनक पर हैरान था कि संगमरमर के महल को क्यों कूड़े से भरा जा रहा है, खैर ! महल भर दिया गया । • दूसरा लड़का विचारवान् था । उसने समझ लिया कि आठ आने से समूचे महल को भरने की बात में कुछ बुद्धि का राज है । वह गया बाजार में और आठ आने के तेल दीपक और बाती लेकर महल के हर कमरे में एक-एक दिया जलाकर रख दिया सारा महल प्रकाश से जगमगा उठा । संगमरमर पर प्रकाश पड़ने से महल की आत्मा और भी कई गुनी बढ़ गई । महल का कोना-कोना प्रकाश से भर गया । दोनों ही पिता के इन्तजार में खड़े थे । सेठ आया तो पहले कूड़े वाले ने अपने कारनामे देखने का आग्रह किया । प्रकाश वाला शांत भाव से खड़ा रहा । बूढ़े बाप ने जब महल को देखा तो बड़े बेटे की बुद्धि पर सिर पीट लिया और इतनी दुर्गन्ध थी कि नाक फट रही थी । एक क्षण भी टिकना मुश्किल हो गया । जब उसने लड़के से पूछा कि यह क्या किया, तो उसने उत्तर में बताया कि आठ आने में समूचा महल कूड़े से नहीं तो हीरों से भरा जा सकता था । जब वह दूसरे लड़के के महल में गया, तो महल को दीपक के प्रकाश से जगमगाता देखकर आनन्दित हो गया । उसने देखा कि वहाँ साक्षात् स्वर्ग उतर आया है, और आलोक अठखेलियाँ कर रहा है । उसने पहले लड़के से कहा — देखो यह महल का कोई भी भाग खाली तो नहीं है ? ऐसा कोई भी कोना या जगह तो नहीं है जहाँ प्रकाश नहीं है ? पहला लड़का मारे शर्म और ईर्ष्या के धरती कुरेदने लग गया । सेठ ने हर्ष से उस लड़के को चूम लिया, कहा और आज मेरी अशान्ति Jain Education International १३६ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001335
Book TitleParyushan Pravachan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1994
Total Pages196
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Paryushan
File Size11 MB
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