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पर्युषण-प्रवचन
हुआ है ? यह देखना चाहिए । भगवान् महावीर ने कहा है कि परलोक के द्वार पर तुम्हारे सामने एक ही प्रश्न आता है - किंवा दच्चा, किंवा समायरित्ता
अर्थात् क्या देकर आए हो और क्या करके आए हो ? स्वर्ग के हजारों हजार देवता और अप्सराएँ घेर कर सबसे पहले यही पूछते हैं कि तुमने जीवन में किसी को कुछ दिया या नहीं ? वहाँ यह नहीं पूछा जाता है कि शरीर की सेवा के लिए कितने रुपये खर्च किए ? कितने नौकर रहते, और कितने बँगले व मोटर गाड़ियाँ थीं तुम्हारे धन वैभव और ऐश्वर्य कितना था ? किंतु इसके विपरीत यह पूछा जाएगा कि संसार में न्याय, नीति, अहिंसा, सत्य, करुणा आदि का तुम्हारा क्या हिसाब है ? वहाँ यह भी नहीं पूछा जाएगा कि तुमने क्या - क्या श्रेष्ठ पदार्थ खाए ? किन्तु यह पूछा जाएगा, कि दूसरों को जीवित रखने के लिए क्या अर्पण किया है । संसार की क्या सेवाएँ तुमने की हैं और कहां तक अपनी इच्छाओं का बलिदान करके विश्व का हित किया है ?
मन के महल में
भारतीय संस्कृति का यही मूल सूत्र है कि वहाँ आत्मा को परखा जाता है । भौतिक सुख सुविधाएँ और विकास आत्मा को मूर्च्छित एवं तमसावृत कर देती हैं, जब तक उस आत्मा में त्याग, तपस्या, सेवा और सदाचार के दीपक नहीं जलाए जाते, तब तक उसमें वासना और भोग विलास की गन्दगी ही भरी रहती है, और आत्मा का वहाँ कोई मूल्यांकन नहीं किया जा सकता है । इसलिए मन के इस महल को वासनाओं की गन्दगी से मत भरो, किन्तु त्याग और सदाचार के प्रकाश से जगमगाओ ।
एक प्राचीन आख्यायिका है कि एक सेठ ने अपने पुरुषार्थ से बहुत धन कमाया, अनेक महल बनवाए । बुढ़ापे में उसके मन में इस प्रश्न पर चिन्ता उठी कि दो पुत्रों में से अपना उत्तराधिकारी किसे बनाएँगे । उसने एक दिन दोनों लड़कों को बुलाया और उनसे कहा कि यह जो महल है वह खाली पड़ा है । इसलिए मैं दुखी हूँ । अतः कौन इस महल का कोना-कोना भर कर मेरे दुख को दूर कर सकता है ?
दोनों ही पुत्रों ने इसकी पूर्ति की स्वीकृति की । सेठ ने दोनों को आठ-आठ आने दिए और कहा कि इतने से ही इस महल का कोना-कोना
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