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________________ पर्युषण-प्रवचन दूर हुई है, मेरी आत्मा को संतोष मिला है । वही मेरा सच्चा उत्तराधिकारी है । भारत के हर गुरु आचार्य महापुरुष राम, कृष्ण, महावीर और बुद्ध ने अपने शिष्यों, पुत्र एवं पुत्रियों को यही सन्देश दिया कि अपने इस मन मंदिर को खाली मत रखो, इसका हर कोना जो रिक्त पड़ा है, भर दो । किन्तु कुछ तो ऐसे हैं, जो उसे घृणा, द्वेष, ईर्ष्या आदि कूड़े से भर देते हैं । उनमें सास और बहू, बूढ़े और बुढ़िया, जाति और धर्म की आलोचना निन्दा, आदि के घिनोने कीड़े पलते हैं । कुछ उसमें क्रोध, मान, माया एवं लोभ दुर्व्यसन आदि के दुर्गन्धमय कूड़ों से उस मन मन्दिर को भर देते हैं । पिता की, महापुरुषों और गुरुओं की आज्ञा का पालन तो कर रहे हैं, किन्तु बड़े ही विचित्र तरीके से । उन्हें और कोई सद्गुण सत्य, अहिंसा, प्रेम, सेवा आदि का प्रकाश सूझता ही नहीं, दिन रात उनके सामने वही कूड़ा पड़ा रहता है, और वही कूड़ा अपने सुन्दर मन मन्दिर में जाकर उसको बंद कर लेते हैं । किन्तु पुत्र ऐसे भी होते हैं जो पिता की गुरु की आज्ञा का सुन्दर ढंग से पालन करते हैं । अपने मन मन्दिर में प्रेम, दया, सादाचार, सद्भाव, स्नेह, परोपकार आदि के दीपक जलाकर उसका कोना-कोना प्रकाशमय बना देते हैं । पर्युषण पर्व का त्यौहार हमें यही सिखाता है कि तुम अपने रीते मन मन्दिर को तो भरो पर सावधान ! कहीं उसमें कूड़ा भरकर गन्दगी मत फैला देना, उसमें ईर्ष्या, लोभ व मात्सर्य के कीड़े बिलबिलाने लग गए, तो समूचा मन का महल ही गन्दा और जर्जर हो जायगा । तुम उस विवेकी पुत्र की तरह मन के महल में सद्भाव और परोपकार के दीपक जलाओ । यही पर्युषण पर्व की सफलता है । और तुम्हारे जीवन की मंजिल है । इस मार्ग से ही तुम जीवन के अन्तिम ध्येय तक पहुँचकर अपनी लक्ष्य सिद्धि पा सकते हो । एक दृष्टि से तुम्हारा मार्ग भी यही है और मंजिल भी यही है । H Jain Education International १४० For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001335
Book TitleParyushan Pravachan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1994
Total Pages196
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Paryushan
File Size11 MB
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