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________________ सुदर्शन का अभय-दर्शन बगीचा और उसके आस-पास का वातावरण महक रहा था । अर्जुन की पत्नी का नाम बन्धुमती था । वह भी बड़ी सुन्दर और सुशील थी । वह प्रतिदिन सुबह उठकर पहले स्नान करती, फिर उसी बगीचे में उसके कुल देव मुदगर पाणि नामक यक्ष का मन्दिर था, जिसके ताजे और सुन्दर फूलों से पूजा करता और फिर फूलों को तोड़कर गजरे बनाता और इन्हें बेचकर अपनी आजीविका चलाता ।। राजगृह में कुछ धनी और उच्छंखल व्यक्तियों की एक मण्डली (गोष्ठी) थी, जो ललित के नाम से प्रसिद्ध थी । आमोद-प्रमोद, भोग विलास में ही उनका जीवन बीतता । धन और शक्ति का मद ऐसा होता है कि यदि उस पर विवेक का अंकुश न रहे तो वह मनुष्य को समाज व राष्ट्र द्रोही तथा गुण्डा बना देती है । समाज व व्यक्ति के जीवन की सुरक्षा के लिए सामाजिक मर्यादाओं व राजनीतिक अंकुश की भी आवश्यकता होती है । यदि यह न हो तो जीवन में अस्त-व्यस्तता तथा उलझनें आती हैं और अपराधों तथा हत्याओं के भीषण काण्ड होने लग जाते हैं । यही बात राजगृह में चरितार्थ हो रही थी । एक दिन उन्हीं छहों मित्रों की गोष्ठी उस बगीचे में पहुँच गई, उस समय अर्जुन माली यक्ष की पूजा कर रहा था और उसकी पत्नी फूल बीन रही थी । दुष्टों के हाथ यह अच्छा अवसर लग गया, वे बन्धुमती के सौन्दर्य पर बहुत समय से आँख गड़ाए ताक रहे थे. आज उन्हें मौका मिल गया. अर्जन माली को उन्होंने रस्सियों से बाँध दिया । और उसी की आँखों के सामने उसकी पत्नी के साथ बलात्कार करने लगे, पत्नी जोर-जोर से चिल्लाने लगी, उसकी चिल्लाहट और यह वीभत्स काण्ड देखकर अर्जुन माली का खून तो खौल उठा, उसकी नसें फड़कने लगीं, पर करे भी क्या ? आखिर गहरा बंधा था । उसके मन में क्रोध और रोष की ज्वालाएँ भभकने लगीं, पहले उसने उन्हें गालियाँ निकालीं, फिर राजा को कोसा जिसके शासन में इस प्रकार के उच्छृखल स्वच्छंदाचार होते हैं और यों किसी सद्गृहिणी की अस्मत लूटी जाती है । वास्तव में जिस राज्य में प्रजा की आत्मा पीड़ित होती है, अन्याय और व्यभिचार को बढ़ावा मिलता है, उस पर कोई कड़ा कदम नहीं उठाया जाता वह राज्य, राज्य नहीं किन्तु कुराज्य होता है । वह शासन दुःशासन होता है । आचार्य हेमचन्द्र के एक प्रतिभाशाली शिष्य आचार्य रामचन्द्र ने एक प्रकरण में कहा है कि -"स्वच्छंदाचारी व्यक्ति राज्य में अव्यवस्था फैला देते हैं । उनका दमन करना राजा का कर्तव्य है।" 3 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001335
Book TitleParyushan Pravachan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1994
Total Pages196
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Paryushan
File Size11 MB
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