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________________ सन् १९१६ की सोवियत क्रान्ति के बाद दुनिया के मजदूरों एक हो जाओ' का आकर्षक नारा तूफान की तरह फैलता हुआ हमारे देश में भी आया तब यह देश गुलाम था। अतः लोगों के पास सर्वप्रथम इसे आजाद करने की ही समस्या सबसे बड़ी थी। महात्मा गान्धी जैसा महान् युगपुरुष सामने आया और देश आजाद हुआ। लोगों ने क्षणभर के लिए सुख की सांस ली। किन्तु पुनः देश अराजकता का शिकार हो गया। अनेक लोगों के विचारानुसार जो व्यवस्था अंग्रेजों के समय में थी, उससे भी कहीं बदतर स्थिति लोगों की हो गयी। प्रबुद्ध लोगों के विचारों का दलों के रूप में टकराव का एक कैम्प निर्मित होता गया और मूक जनता असहाय स्थिति में अपने नेताओं का केवल मुंह ताकती रही । आज देश की वर्तमान परिस्थिति से लगभग सभी अवगत हैं। मजदूरों के एक होने के नाम पर मजदूरों को काम नहीं करने का पाठ पढ़ाया जा रहा है। अकर्मण्यता का शिक्षण दिया जा रहा है। और मजदूरों के नेताओं को देखिए, वे बात-बात में सोवियत देश की दुहाई दे रहे हैं । लेनिन एवं मार्क्स को उद्धृत कर रहे हैं । धर्म, दर्शन, सभ्यता, संस्कृति सबको जी भरकर गालियाँ दे रहे हैं। गरीबी से त्राण दिलाने के नाम पर यह सब-कुछ खराब है, सब बेकार है। किसी भी मूल्य पर हो, शोषकों को समाप्त करो, सब ओर संत्रास फैला दो । यही एक अन्धा पाठ मजदूरों को पढ़ाया जा रहा है। यहाँ तक कि अनेक प्रबुद्ध लोग भी बिना कुछ सोचे-समझे एक स्वर से यही चिल्ला रहे हैं। 1 यह एक भयंकर स्थिति है। सोवियत देश में अपने देश जैसा कुछ नहीं है। वहाँ थम की चोरी करने वालों को कठोर सजा दी जाती है। वहाँ कोई भी व्यक्ति धम की चोरी नहीं कर सकता। यह एक भयंकर सामाजिक अपराध माना जाता है पर हमारे देश में ऐसा कहाँ है ? यहाँ के मन-मस्तिष्क में थम का कोई अर्थ ही नहीं हैं। और जो घोड़ा बहुत हैं भी उसे बेदर्दी से बर्बाद किया जा रहा है। गरीबों एवं पीड़ितों के सर्वतोमुखी उत्थान की चिन्ता, सम्पत्ति एवं उन्नति के अवसरों का सभी के लिए मुक्तद्वार, अधिक तथा उचित वितरण के लिए जनोपयोगी माँग और जातीय आदि असमानता समाप्त कर समत्व की स्थापना का आग्रह, इत्यादि मार्क्सवाद के निश्चित ही महत्त्वपूर्ण सामाजिक सन्देश हैं, जिनसे सभी आदर्शवादी सहमत हैं। परन्तु इसके सामाजिक कार्यक्रमों से सहानुभूति होने का यह अर्थ नहीं है कि हम मानवीय जीवन के मार्क्सवादी दर्शन की चरम वास्तविकता को उसकी नास्तिक धारणा को, मनुष्य के संबंध में उसके प्रकृतिवादी दृष्टिकोण को और व्यक्तित्व की पवित्रता के प्रति उसकी निष्ठुर अवज्ञा को भी आंख मूंदकर स्वीकार कर लें। मार्क्स अपने युग के निश्चित ही एक महान चिन्तक थे। वे मनीषी थे। अतः समाजोत्थान के अपने दार्शनिक सिद्धान्त का प्रतिपादन करने के बाद, संभवत: मजदूरों की अकर्मण्यता को भी मार्क्स समझ गये थे । अस्तु, उन्होंने यह भी लिखा था कि "बैंक गाड आय एम नाट मासिस्ट ।" इस पर से यहाँ समझा जाना चाहिए मार्क्स यह कहता है कि "मैं किसी भी सिद्धान्त को अन्तिम और पूर्ण और सूत रूप से स्वीकार करने की शपथ नहीं ले 'चुका हूँ।" श्रमण भगवान् महावीर के अनतिवादी अनेकान्त और मार्क्स की इस दृष्टि में यहाँ एकरूपता है, जिसे कोई भी चिन्तनशील व्यक्ति परिलक्षित कर सकता है। स्पष्ट है, श्रम के अपने तथाकल्पित संघर्षप्रधान विद्रोही दर्शन को प्रस्तुत करते हुए मार्क्स केवल युगानुलक्ष्यी अस्थायी सत्य को ही प्रस्तुत करता है। उनकी चिन्तन प्रक्रिया उन्हीं के शब्दों में कोई एक शाश्वत सत्य नहीं हैं। यह एक समाजवादी पद्धति है। इसका निर्माण के लिए अमुक उपयोगी अंश स्वीकृत किया जा सकता है, किन्तु जो अंश विघटन का है, परस्पर विग्रह का है, वर्ग संघर्ष का है, हिंसा का है, निर्माण के स्थान पर विनाश का है, उसे भारत जैसे सांस्कृतिक देश में कैसे स्वीकृति मिल सकती है। कहने का तात्पर्य यह है कि रचनात्मक तथ्यों से विपरीत विद्रोह भावना, मजदूरों के मन में भरी जा रही है। परिणाम स्पष्ट है, कहीं-कुछ काम नहीं हो पा रहा है। फलतः समस्याएँ घटने के बजाय बढ़ती ही जा रही है। यह श्रम की चोरी का एक पक्ष है । और दूसरा पक्ष यह भी है कि बहुत से क्षेत्रों में श्रम का उचित मूल्य नहीं मिल रहा है। इस पर भी शान्त मस्तिष्क से विचार करना होगा। यह ठीक है कि मजदूर एवं इंजिनियर एक नहीं हो सकते पर सबको जीवननिर्वाह हेतु उचित मुआवजा तो मिलना ही चाहिए। साथ ही उचित सम्मान एवं आदर भी 'यथायोग्यम्' का अबाधित सिद्धान्त है उसे यों ही किसी लफाजी से झुठलाया नहीं जा सकता। एक बार एक पत्रकार ने इसी सन्दर्भ में एक २०६ सागर, नौका और नाविक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.001329
Book TitleSagar Nauka aur Navik
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherVeerayatan
Publication Year2000
Total Pages294
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size7 MB
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