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गणितात्मक प्रणाली
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नहीं होता इसलिए संसारमें रहना तो स्थिति बन्धके अनुसार है । घातियोंके द्वारा आत्मगुणोंका घात होनेसे घातिया अप्रशस्त ही है इसलिए दर्शन चारित्रको लब्धिसे प्रशस्त प्रकृतियोंके अनुभाग की अधिकता, अप्रशस्त प्रकृतियोंके अनुभागकी होनता होती है। इस प्रकार कषायोंका अभाव होनेपर अनुभाग वन्धका अमाव होता है ।
सत्त्व नाका क्रम इस प्रकार है- दर्शनचारित्र लब्धिके निमित्तसे सर्वप्रथम मिथ्यात्वादि अति अप्रशस्त प्रकृतियोंका, तत्पश्चात् ज्ञानावरणादि अप्रशस्त प्रकृतियोंका और फिर प्रशस्त प्रकृतियोंका सत्व नाश होता है। सरव नाश स्वमुख उदय द्वारा तथा परमुख उदय द्वारा दोनों प्रकार होता है। वहाँ जो प्रकृति अपने ही रूप रहकर अपनी स्थिति सत्त्वके अन्त निषेकका उदय होनेपर अभावको प्राप्त होती है उसका स्वमुख उदय द्वारा सत्त्व नाश होता है । जैसे संज्वलन लोभ प्रकृति, क्षपक सूक्ष्मसाम्परायके अन्तमें अपने ही रूप उदय होकर नाशको प्राप्त होती है। जो प्रकृति संक्रमणके वशसे अन्य प्रकृति रूप परिणमन कर अपने अभावको प्राप्त होती है उसका परमुख उदय द्वारा सत्त्व नाशको प्राप्त होता है। एक-एक सत्ताके निषेकोंके परमाणु एक-एक समय में उदय रूप होकर निर्जरित होते हैं । दर्शनचारित्र लब्धिके निमित्तसे ऊपर के निषेकोंके परमाणु निचले निषेक रूप होकर परिणमते हैं। यहाँ एक-एक समयमें साधिक समयप्रबद्धकी वा अनेक समय प्रबद्धोंकी निर्जरा होती है। इस प्रकार निर्जरा अधिक किन्तु बन्ध थोड़ा होता है। यहाँ तक कि किसी कालमें किसी प्रकृतिका बन्ध नहीं होता है, केवल निर्जरा ही होती है। इस प्रकार सर्व कर्म परमाणुओंका नाश होनेपर सर्वधा प्रदेश सत्व नाश होता है ।
अब स्थिति सस्य नाश क्रमका वर्णन है। एक-एक समय व्यतीत होते स्थिति सत्त्व एक-एक समय घटता है। दर्शनचारित्र लब्धिके निमित्तसे स्थिति काण्डक विधानसे और अपकृष्टि विधानसे स्थिति सत्यका घटना होता है ।
काण्डक विधान : बहुत प्रमाण लिये स्थिति सत्त्व था, उसके समय-समय प्रति उदय आने योग्य बहुत हो निषेक थे, उनमें कितने एक ऊपरके निषेकोंका नाश कर स्थिति सत्त्व घटाया जाता है । वहाँ उन नाश करने योग्य निषेकोंके जो सर्व परमाणु हैं उनका नाश करनेके पश्चात् जो स्थिति रहेगी उसके आवली मात्र ऊपरके निषेक छोड़कर सर्व निषेकोंमें मिलते हैं। वहाँ उन सर्व परमाणुओंमें कितने एक परमाणु पहले समय में मिलते हैं, कितने एक दूसरे समयमें मिलते हैं, इस प्रकार यथासम्भव अन्तर्मुहूर्त काल पर्यन्त परमाणुओंको निचले निषेकमें प्राप्त करते हैं। वहां अन्त समयमें अवशेष रहे सर्व परमाणुओंको निवले निषेक में प्राप्त होते रहते उन नाश करने योग्य निषेकोंका नाश हुआ, तब जितने निवेकोंका नाश हुआ उतने समय प्रमाण स्थिति सत्य वहां घट जाता है।
उदाहरण मान लो स्थिति सत्व ४८ समय मात्र था। उसके ४८ ही निषेक थे। उन सर्व निषेककि मान को २५००० परमाणु थे। उनमें ८ निषेकों का नाश करनेपर वहाँ उन निषेकोंके १००० परमाणु है। अवशेष ४० निषेकोंमें ऊपरके दो निषेक छोड़कर नीचे २८ निषेकोंमें वे १००० परमाणु मिलते हैं। वहाँ उन निषेकोंमें कई परमाणु पहले समय में, कई दूसरे समयमें इस प्रकार चार समय पर्यन्त मिलते हैं। वहाँ चौथे समय अवशेष सर्व परमाणुओंको उन ३८ निवेकोंमें मिलनेपर उन ८ निषेकोंका अभाव हो जाता है । उनका अभाव होनेपर ४८ समयका स्थिति सत्त्व था वह अब ४० समयका शेष रहा ।
इस प्रकार निषेकोंको क्रमसे निचले निषेक रूप परिणमाकर स्थितिका घटाना स्थिति काण्डक है। इस एक काण्ड में निषेकोंका नाश कर जितनी स्थिति घटायी गयी उसके प्रमाणका नाम स्थिति काण्डक आयाम है। उपरोक्त उदाहरण में आठ समय यह आयाम है। उसके नाश करने योग्य निषेकोंका जो सर्व द्रव्य है उसका नाम काण्डक द्रव्य है, यहाँ उदाहरणमें १००० है । इस द्रव्यको अवशेष स्थितिके निषेकों में
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