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________________ १४२२ गो० कर्मकाण्डे मिलाते हैं। वहाँ आवली मात्र निषेकोंमें नहीं मिलाया जाता है, इस आवलीको अतिस्थापनावकी कहते हैं। यहाँ उदाहरणमें यह दो निषेक है । पुनः इसके बिना अवशेष स्थितिके ३८ निषेकोंमें उस काण्डक द्रव्यको मिलाना काण्डकोस्करण अथवा काण्डकघात संक्रिया (?) कहलाती है। एक काण्डकका उत्कर्षण अन्तर्महर्त काल द्वारा पूर्ण होता है । जिसका नाम काण्डकोस्करण काल है, यहाँ उदाहरणमें यह चार समय है। पुनः इस कालके प्रथम समयमें उस काण्डक द्रव्यका ग्रहण कर जितने परमाणु अवशेष निषकोंमें मिलाये गये उसका नाम प्रथम फालि है । द्वितीय समयमें मिलाये गये परमाणु, द्वितीय फालि कहलाते हैं। इसी प्रकार क्रमशः अन्तिम समयमें मिलाये गये का नाम चरम फालि है। इस तरह एक काण्डक समाप्त होनेपर द्वितीय काण्डक प्रारम्भ होता है । ऐसे ही अनेक काण्डकं होनेपर, स्तोक स्थिति सत्त्व अवशेष रहनेपर काण्डक क्रिया नहीं होती है। इस अवशेष स्थितिका नाश एक-एक समय व्यतीत होते कम (?) होता है। अपकृष्टि विधान-विवक्षित कर्म प्रकृतिके सर्व निषेक सम्बन्धी सभी परमाणु राशिमें अपकर्षण भामहारका भाग देनेपर एक भाग मात्र परमाणु ग्रहण करनेपर अपकृष्ट द्रव्यका प्रमाण होता है। उस भपकृष्ट द्रव्यमें कितने एक परमाणु उदयावलीमें मिलते हैं, कितने एक प्रमाण गुणश्रेणी आयाममें मिलते हैं, अवशेष परमाणु उपरितन स्थिति में मिलाते हैं। वहाँ वर्तमान समयसे लगाकर आवलीमात्र समय सम्बन्धी जो निषेक है उनका नाम उदयावलो हैं। उन निषेकोंमें उदयावलीमें देने योग्य जो द्रव्य है, उसको निषेक निषेक प्रति एक-एक चय घटता क्रम-क्रमसे मिलाते हैं। पुनः उन आवली मात्र निषेकोंके उपरिवत सम्भव अन्तर्मुहूर्तके समय सम्बन्धी जो निषेक हैं उनका नाम गुणश्रेणी आयाम है । गुणश्रेणी आयाम निषेकोंमें देने योग्य जो द्रव्य है उसे निषेक-निषेक प्रति असंख्यातगुणा क्रम लिये मिलाते हैं। उनके उपरिवर्ती अवशेष सर्व स्थति सम्बन्धी निषेकोंका नाम उपरितत स्थिति है। उनमें अन्तके आवली मात्र निषेकोंमें तो द्रव्य नहीं मिलाते हैं, इस आवलीका नाम प्रतिस्थापनावली है। उसके बिना अन्य निषेकोंमें उपरितन स्थितिमें देने योग्य जो द्रव्य है उसे नानागुणहानि रचना द्वारा निषेक प्रतिचय घटते क्रमसे मिलाते हैं । उदाहरण-मान लो विवक्षित कर्म प्रकृतिकी स्थिति ४८ समय है। उसके ४८ निषेक हैं तथा परमाणु २५००० हैं । इसमें अपकर्षण भागहार प्रमाण ( मान लो ) पाँचका भाग देनेपर ५००० हुए । सर्व परमाणुओंमेंसे इतने ५००० परमाणु ग्रहण कर उनमेंसे २५० परमाणु उदयावलीमें देते हैं। इस प्रकार ४८ निषेकोंमेंसे प्रथमादि चार निषेक उदयावलीके हैं, उनमें चय घटते क्रमसे मिलाते हैं। पुनः १००० परमाणु गुणश्रेणि आयाममें देते हैं । इसलिए पाँचवाँ आदि बारहवें पर्यन्त जो ८ निषेक गुणधेणी आयामके हैं उनमें असंख्यात गुणाक्रम लिये मिलाते है । ३७५० परमाणु उपरितन स्थितिमें देते हैं, वहाँ ३६ निषेक अवशेष रहनेवालोंमें अन्तके ४ निषेक छोड़ देते हैं क्योंकि वे अतिस्थापनावलीके है। अवशेष तेरहवाँसे लेकर चवालीस पर्यन्त ३२ निषेकोंमें नानागुणहानिकी रचना लिये चय घटते क्रममें मिलाते हैं। मिलानेका विधान बागे वर्णित है। कहीं सदयादिक गुणश्रेणि मायाम होता है । अपकृष्ट द्रव्यमें कितने एक द्रव्यको तो गुणश्रेणी आयाम प्रमाण जो वर्तमान समय सम्बन्धी निषेकसे. लगाकर निषेकोंमें असंख्यात गुणाक्रमसे मिलाते हैं। अवशेषको उपरितन स्थितिमें मिलाते हैं । इस प्रकार यहाँ गणश्रेणि आयाममें उदयावली भित होती है। गुणश्रेणि आयाममें कहीं गलितावशेष और कहीं अवस्थित होता है । गलितावशेष गुणश्रेणिका प्रारम्भ करनेके लिए प्रथम समयमें जो गुणश्रेणि आयामका प्रमाण था, उसमेंसे एक-एक समय व्यतीत होते उसके द्वितीयादि समयोंमें गुणश्रेणि आयाम क्रमसे एक एक निषेक घटता हुआ अवशेष रहेका नाम गलितावशेष है। अवस्थित गुमश्रेणि आयामके प्रारम्भ करनेके प्रथम-द्वितीयादि समयोंमें गुणश्रेणि आयाम जितनाका तितना Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001326
Book TitleGommatasara Karma kanad Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages828
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Karma
File Size18 MB
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