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कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्वप्रदीपिका
१३६३ इंतु स्थितिविकल्पंगळुमवर स्थितिबंधाध्यवसायंगळं स्थापिसल्पटुवल्लि स्थितिबंधाध्यवसायस्थानंगळगे अनुकृष्टिविधानमुंदु पेळ्दपरु :
पल्लासंखेज्जदिमा अणुकड्डी तत्तियाणि खंडाणि ।
अधियकमाणि तिरिच्छे चरिमं खंडं च अहियं तु ॥९५४॥ पल्यासंख्यातेकभागोनुकृष्टिस्तावन्मात्राणि खंडान्यधिकक्रमाणि तिर्यक्चरमखंडं ५ चाधिकं तु॥
जघन्यस्थिति मोदल्गोंडु तदुत्कृष्टस्थितिपयंतमिई स्थितिविकल्पंगळ स्थितिबंधाध्यवसायंगळगे प्रत्येकमनुकृष्टि विधानमुंटा अनुकृष्टि पदप्रमाणमेनित कुमें दोडे स्थितिबंधाध्यवसाय
इदनपत्ति
गुणहान्यायाममिदं प११ नोडलु संख्यातेकभागमक्कुमप्पुरिदं प ११ छे व छ
छ व छे a
a
जप
उप११
९।१०।११।१२।१३ । १४ ।१५।१६।००००।२८८।३२०१३५२।३८४।४१६।४४८।४८०१५१२। १० तेषामनुकृष्टिविधानमाह
अनुकृष्टिपदं पल्यासंख्यातकभागः प स्थितिबन्धाध्यवसायगुणहान्यायास्य
छे-व-छे
चय मिलाते हुए एक हीन गुणहानि प्रमाण सात चय मिलानेपर पाँच सौ बारह अन्तिम निषेक जानना । यह कथन अंक संदृष्टि से जानना ।
यहाँ भी प्रथम गुणहानिके प्रथम निषेकरूप अध्यवसाय स्थान जघन्य स्थितिके १५ कारण जानना। द्वितीय निषेक प्रमाण अध्यवसाय स्थान एफसमय अधिक स्थिति के कारण जानना। इसी प्रकार अन्तिम गणहानिके अन्तिम निषेक प्रमाण स्थितिबन्धाध्यवसाय स्थान उत्कृष्ट स्थितिके कारण जानना ॥९५३।।
___ यहाँ एक स्थिति भेद सम्बन्धी अध्यवसायोंमें नाना जीवोंको अपेक्षा खण्ड पाये जाते हैं । अथवा किसी जीवके जिन अध्यवसायोंसे नीचे की स्थिति बँधती है किसी अन्यके २० उन्हींसे ऊारकी स्थिति बँधती है। इस प्रकार ऊपर-नीचेमें समानता होनेसे अनुकृष्टि विधान कहते हैं
स्थितिबन्धाध्यवसाय स्थानों में जो गुणहानि आयामका प्रमाण कहा है उसमें संख्यातका भाग देनेपर पल्यका असंख्यातवाँ भाग होता है। उतना ही अनुकृष्टि रचनामें गच्छका प्रमाण जानना। उतने ही अनुकृष्टिके खण्ड होते हैं। विवक्षित भेदरचनामें उन खण्डोंकी २५
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