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गो० कर्मकाण्डे
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चयाधिकंगळागुत्तं पोगि प्रथमगुणहानिचरमनिषेकदोळु बोगुणहानिमात्र चयंगळप्पुवु । ८ । २॥ चरमगुणहानि द्रव्यमुमनिदं । ३२०० | गुणहानियिदं भागिसिदोडे मध्यमधनमक्कु ३२०० मा मध्यमधनमं रूपोनगुणहान्यर्द्धरहित दोगुणहा 'नियिदं भागिसिदोडे चरम गुणहानिसंबंधि प्रचयमक्कु ३२०० मिवं रूपोनगुणहानिर्थिवं गुणिसिबोर्ड चरम गुणहानिप्रथम निषेकमक्कुं ३२०० ॥८
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५ अपर्वात्ततमिदु ३२ || मेले द्वितीयादि निषेकंगळोळु एकै कचयाधिकमागुत्तं पोगि चरमगुणहानि चरम निषेकडो दोगुणहानिमात्रचयंगळवु । ३२ । ८ । २ । मितिनितकुं । संदृष्टि :
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उ प ११
ज प १
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९।१०।११।१२।१३।१४।१५।१६।०००००।२८८ | ३२०। ३५२ । ३८४ । ४१६।४४८|४८०।५१२
द्वितीयादिनिषेकः एकैकचयाधिको भूत्वा चरमो दोगुणहानिमात्र चयो भवति ८ । २ चरमगुणहानी द्रव्यं ३२०० गुणान्या भक्तं मध्यमवनं ३२०० तदेव रूपोनगुणहान्यर्षोन दोगुणहान्या भक्तं प्रचयः ३२०० स एव रूपाधिक
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गुणहानिना गुणितः प्रथमनिषेक:
३२०० । ८
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८ । ८ । ३
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८ । ८ । ३
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१० एकैकचयाधिको भूत्वा चरमो दोगुणहानिमात्रच्यो भवति ३२ । ८ । २ संदृष्टिः
अतः ३२ ।। ततो द्वितीयादिनिषेकः
गुणहानि आठसे भाग देनेपर साढ़े बारह मध्यधन जानना । एक हीन गच्छ सातका आधा साढ़े को दो गुणहान सोलह में से घटानेपर साढ़े बारह रहे । मध्यधन में साढ़े बारहका भाग देने पर एक पाया सो चयका प्रमाण जानना । उसको एक अधिक गुणहानि के प्रमाण नौसे गुणा करनेपर न पाया । यही प्रथम निषेक जानना । द्वितीयादि निषेकोंमें एक-एक १५ चय अधिक होता है। एक हीन गुणहानिका प्रमाण सात है । सात चय मिलनेवर सोलह हुए । यही अन्तिम निषेक जानना । द्वितीयादि गुणहानियोंमें द्रव्य निषेक चय सब दूना-दूना होते हैं । अन्तिम गुणहानिमें प्रथम गुणहानिके द्रव्य सौको अन्योन्याभ्यस्त राशि के आधे बत्तीस से गुणा करनेपर बत्तीस सौ तो द्रव्य जानना । उसमें गच्छ आठसे भाग देनेपर मध्य धन चार सौ हुआ । उसमें एक हीन गुणहानिके आधेसे हीन दो गुणहानि के प्रमाण साढ़े २० बारहका भाग देनेपर बत्तीस पाया । वही चय जानना । द्वितीयादि निषेकों में एक-एक
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