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कर्णाटवृत्ति जोवतत्वप्रदीपिका
५३५७
यक्कुं ५११ नानागुणहानिशलाकेगळ्गे द्विकसंवर्गमं माडिदोडन्योन्याभ्यतराशियक्कुं प मोह
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नीयविवर्तयिदं कर्मस्थितिबंधाध्यवसायस्थानंगळ द्रव्यम बुदक्कुं 32 पपप स्थितिविकल्पं. गळ स्थितियक्कुं। यिवर समुच्चयसंदृष्टि :| द्रव्य । स्थिति । गुणदो गुण ।
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प११।२
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। ६ । ६४ । इंतागुतं विरलु रूपोनान्योन्याम्यस्तराशियिदं द्रव्यम भागिसिदोडधिकसंकलनविवयिदं प्रथमगुणहानिद्रव्यमक्कुं = पपप द्वितीयादिगुणहानिद्रव्यंगळु द्विगुणद्विगुणक्रमदिदं पोगि ५
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चरमगणहानिद्रव्यमिनितक्कुं = ३ प प प अ ई सर्वगुणहानिद्रव्यंगळोल प्रथमगुणहानि
१०.
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प ११ । २। नानागुणहानिशलाकामात्रद्विकसंवर्गेऽन्योन्याभ्यस्तः ५ स्थितिबन्धाध्यवसायस्थानानि द्रव्यं छे-व-छे
पपप रूपोनान्योन्याभ्यस्तेन द्रव्ये भक्तेऽधिकसंकलनविवक्षया प्रथमगुणहानिद्रव्यं 3 पप aaa
अ aaa द्वितीयादिगुणहानिषु द्विगुणद्विगुणं भूत्वा चरमायामेतावत् =३ प प प अ तत्र प्रथमगुणहानिद्रव्ये = a पपप
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आयाम जानना। यहाँ पल्यकी वगशलाकाके अर्द्धच्छेदोंसे हीन पल्यके अर्द्धच्छेदोंके प्रमाणका १० असंख्यातवाँ भाग गुणहानि शलाकाका प्रमाण जानना । गुणहानि आयामका दूना दो गुण हानिका प्रमाण होता है। तथा नानागुणहानि शलाका प्रमाण दोके अंक रखकर परस्परमें गुणा करनेसे जो प्रमाण हो वही अन्योन्याभ्यस्त राशिका प्रमाण है। सो पल्यके असंख्यातवाँ भाग प्रमाण अन्योन्याभ्यस्त राशि है। असंख्यात लोकको तीन बार पल्यके असंख्यातवें भागसे गुणा करनेपर जो प्रमाण हो उतने स्थितिबन्धाध्यवसाय स्थान हैं। वही यहाँ द्रव्यका १५ प्रमाण जानना। इस द्रव्यमें एक हीन अन्योन्याभ्यस्त राशिसे भाग देनेपर जो प्रमाण आवे
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