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________________ १३५६ गो० कर्मकाण्डे योत्कृष्टस्थिति सप्ततिकोटाकोटिसागरोपमंगळगे येनितद्धारपल्यंगळप्पुवेंदु त्रैराशिकम माडिदोडे । । सा। फा५ १० । को २ । इ। सा ७० को २। बंद लब्धं मोहनीयोत्कृष्टस्थितिगिनितद्धारपल्यंगळप्पुवु । प १० । को २ । ७० को २। यिनितुं पल्यंगळं जघन्यस्थितियं नोडलु संख्यात गुणितपल्यंगळेदु स्थापिसापटुदु । ५११। जघन्यस्थितियमेले समयोत्तरक्रमविंदमुत्कृष्टस्थिति. ५ पय्यंत निरंतरस्थितिविकल्पंगळितिप्पुवु : पश्पपपपपपप१०००० ० ΛΙΛΙΛΛ ΛΙΛΙΛΙΛ. ११ प१११११ प११ प११ १११ पश्प ११ इल्लि आदिप १ ते ५१।१। सुद्धे ५१।। वढिहिदे ५१।। स्वसंजुदे . ठाणा प॥ एदिनितुं मोहनीयस्थितिस्थानविकल्पंगळप्पुवु । स्थितिविकल्पंगळ नानागुण हानिकलार्क गलिई भागिसुत्तं विरलु गुणहान्याममक्कु पु.१० मिदं द्विगुणिसिदोडे दोगुणहानि व छ . ७ ६ ५ ४ ३ २ १ पश् ११११ प प ५१५१५१००००० ११३००० १११ १११११११११११११११११११ AAAAAAAA A MAA AAAA अस्यां नानागुणहानिशलाकाभिर्भक्तायां गुणहान्यायामः १ ११ अयं च द्विगुणितो दोगुणहानिः छ व छे १. आबाधाकालके समय जानना। उसके ऊपर प्रथम समयसे लगाकर अन्तिम समय पर्यन्त निषेक घटते जाते हैं। इसीसे नीचेसे चौड़ा और ऊपरसे सकरा आकार बनाया है। यहाँ जितने स्थिति के भेद होते हैं उन्हें मोहनीयकी स्थितिबन्धाध्यवसाय रचना स्थितिका प्रमाण जानना । उसको नानागुणहानि शलाकासे भाग देनेपर जो प्रमाण आवे उसे गुणहानि १. अत्र आदी ५ १ अन्ते १११ सुद्धे ५११ वड्डिहिदे-५। १ रूवसंजुदे ठाणा 4212 अधिकोऽयं पाठः। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001326
Book TitleGommatasara Karma kanad Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages828
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Karma
File Size18 MB
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