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________________ कर्णाटवृत्ति जीवतत्वप्रदीपिका २. fat संकलिसिबोर्ड प्रथमरणमिनितक्कुं । अंतघणं ३२ । ८ । ५ । ८ । ८ गुणगुणियं । ६४ ६ २ २ २ 32141251263 ८५८१८ आदि ११८५१८१८ विहीण ६३ । ८।५।८१८ रुऊणुत्तरभजियर्म बु ६ ८ । २ रूऊणुत्तरभजियमिति तावदेव स्यात् । द्वितीयादिगुणहानिधनादर्षार्थं संदृष्टिः २ 62 १। ८। ५ । ८८ ६ २ .. २ । ८। ५ । ८ । ८ ६ २४।८।५।८।८ ६ २८।८।५।८।८ ६ २ १६ । ८ । ५ । ८ । ८ ६ २ | ३२ । ८।५।८।८ ६ 2 Jain Education International १३३३ २ २ २ तदप्यंतघणं ३२ । ८ । ५ । ८ । ८ गुणगुणियं ६४ । ८ । ५ । ८ । ८ आदि १।८।५ । टाट नियं ६४ पार्टीट ६ ६ ६ उतना हुआ ६३०० × ८x२ । यहाँ तिरसठ सौ तो समयप्रबद्धका प्रमाण है । आठ गुणहानिका प्रमाण है । और दोका गुणा दो गुणहानिका प्रमाण है। इस प्रकार दो तथा आठ गुणहानिसे गुणित समयप्रबद्ध प्रमाण जोड़ हुआ। अब इसमें से जो ऋण घटाना है उसे लाते हैं प्रथम गुणहानिमें ऋण इस प्रकार है - बत्तीसको आठ, पाँच, एक हीन आठ तथा आठ गुणा करो । उनमें से एक गुणकार जुदा रखा था तथा उसमें दो बार संकलनमात्र १० चय घटानेपर जो प्रमाण हुआ था उसको मिलाने और छहका भाग देनेपर बारह हजार पाँच सौ चौवालीस हुआ। क्योंकि पाँच सौ बारहका निषेक सात पंक्तियों में घटा । चार सो अस्सी छह पंक्तियों में घटा । चार सौ अड़तालीस पाँच में घटा । चार सौ सोलह चार में घटा । तीन सौ चौरासी तीनमें घटा । तीन सौ बावन दोमें घटा । तीन सौ बीस एकमें बन्छ । दो सौ अट्ठासीका निषेक आठों ही पंक्तियों में है अतः घटा नहीं। इन सबको १५ For Private & Personal Use Only ५ www.jainelibrary.org
SR No.001326
Book TitleGommatasara Karma kanad Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages828
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Karma
File Size18 MB
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